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किन्तु पाषाण खण्ड की वह शान्ति, मृत शान्ति है, मृतसमदर्शिता है ।
तुम अनन्त शक्ति संपन्न चैतन्य देव हो, तुम्हें यह जड़ शान्ति, एवं जड़ समदर्शिता नहीं चाहिए। तुम उस जीवित शान्ति और जीवित समदर्शिता के उपासक हो, जिसमें सर्वत्र स्व-पर- कल्याण का स्वर मुखरित हो रहा है, विकास का अभियान चल रहा है ।
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निष्कपट मनुष्य की जिह्वा का मूल हृदय में होता है। जो उसके हृदय में है, वही उसकी जीभ पर रहता है ।
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कर्तव्य - भावना की कमी, आज की सब समस्याओं की जड़ है । आज का कर्मचारी वर्ग सुभूम राजा की सेना की तरह सोचता है, वैसा ही आचरण कर रहा है, और कर्तव्य की पालकी गड्ढे में जाकर गिर रही है ।
पौराणिक आख्यायिका है कि सुभूम एक चक्रवर्ती राजा था। उसके पास पाँच सौ अंगरक्षक सुभट थे, बड़े ही बहादुर ।
एक बार राजा घूमने के लिए जंगल में निकला। राजा पालकी में सवार था और सुभट पालकी उठाए आगे बढ़ रहे थे ।
“ इतने सुभट एक साथ पालकी उठाए चल ही रहे हैं। मैं जरा इधर-उधर कंधों को आराम दे लूँ” – एक सुभट ने सोचा !
“इतने एक साथ चल रहे हैं, यदि एक मैं नहीं होऊँ तब भी तो काम चल सकता है ” – दूसरे सुभट ने विचार किया ।
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तीसरे, चौथे, पाँचवें और यों एक-एक करके सभी ने एक साथ मन में निश्चय किया कि 'मेरे एक के हट जाने से तो पालकी गिरने से रही, क्यों न थोड़ा-सा आराम कर लिया जाय ?"
और तब सभी ने एक ही समय पालकी के नीचे से अपना-अपना कंधा हटाया कि पालकी औंधी हो गई, राजा एक गहरे गड्ढे में गिर पड़ा।
अमर डायरी
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