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क्या तुम इसे अहिंसा या दया कहते हो कि सेर खून निकाला और आधा छटांक वापस डाल दिया? छटांक खून निकाल कर दो बूंद वापस लौटा दिया?
लेना अधिक और देना कम, यह अहिंसा नहीं, शोषण है। अहिंसा है-कम से कम लेना, और अधिक से अधिक देना !
श्रम को प्रधान, और पूंजी को गौण माने बिना, भूमण्डल पर कहीं भी शान्ति संभव नहीं है।
फूल के साथ काँटे का भी अपना महत्त्व है। फूल खिलने और महकने के लिए है, तो काँटा फूल के संरक्षण के लिए है।
'सर्वत्र समदर्शन' का अमर सिद्धान्त मानव समाज के संकुचित दृष्टिकोण को विराट बनाता है। उसे करुणा के अमृत रस से लबालब भर देता है। _ 'सर्वत्र समदर्शन' का सिद्धान्त 'सर्वत्र समवर्तन' का उपदेश कभी नहीं करता है।
याद रखो, वर्तन में योग्यता का मापदण्ड यदि सामने नहीं रखा तो अर्थ का .. अनर्थ हो जाएगा !
गाय और गधी का यथाकाल उचित पोषण एवं संवर्धन करते हुए भी यह मत भूलो कि गाय दुहने के लिए है, और गधी लादने के लिए है। ..
दोनों के जीवन का मूल्य (महत्त्व) समान समझो, किन्तु उपयोग उसका अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार करो ! जीवन का यह संतुलित दृष्टिकोण है।
यह देखो, एक पाषाण खण्ड है। इसमें भी गहरी शान्ति है, समदर्शिता भी है। किसी से कुछ भी अपेक्षा नहीं । इसे कोई भी भला बुरा दृश्य प्रभावित नहीं कर सकता है।
अमर डायरी
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