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उधर दौड़ते ही रहते हैं। जब भी आते हैं, कहते हैं—महाराज ! शान्ति नहीं। अपनी तकलीफों को सुनाते हैं, तो मैं सोचता हूँ कि धन की दौड़ में जो ऊपर की
ओर देखकर दौड़ता है, वह कभी सुखी नहीं हो सकता । सुख तभी मिल सकता है, जब प्राप्त स्थिति में ही सुख भोगने की कला सीख ली जाय और वह कला अपने से ऊपर वालों को देखने से नहीं, अपने से नीचे वालों को देखने से आती है। जरा और गहराई में उतरें तो अपने में देखने से आती है, इधर-उधर बाहर में देखने से नहीं।
पात्र बड़ा या पदार्थ ? क्या आप नहीं देखते कि अमृत तुल्य दूध भी खराब पात्र में पड़कर बिगड़ जाता है?
पहले अपना हृदय पात्र शुद्ध करो, सत्पात्र बनो, तभी ज्ञान का शुद्ध दूध । सुरक्षित रूप से टिक सकेगा !
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युद्ध और युद्ध का इतिहास समाप्त करने के लिए सबसे पहला
कदम यह है कि मनुष्य की अपनी छोटी-सी दुनिया में जो । प्रतिक्षण युद्ध चल रहे हैं उन्हें समाप्त किया जाय।
क्रोधी मनुष्य को विनयपूर्वक उत्तर देना, आग पर पानी डालने की तरह है। इस से क्रोध की अग्नि शान्त होती है। वह दुर्जन से सज्जन और शत्रु से मित्र बन जाता है।
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क्रोध का आरम्भ या तो मूर्खता से होता है, या दुर्बलता से। किन्तु याद रखिए, उसका अन्त सदा पश्चात्ताप से ही होता है।
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अमर डायरी
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