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अपनी विनोद वृत्ति को इतना न बढ़ा कि मन उन्मत्त हो जाय; और न दुःख को इतना प्रबल होने दे कि हृदय ही दब जाय ।
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उसे मृत्यु का क्या डर ? जिसने कभी कोई बुरा काम न किया हो। और उसके जीवन में आनन्द क्या ? जिसने कभी किसी की भलाई न की हो ! बुराई से भय, और भलाई से आनन्द - जीवन का यही प्रशस्त नियम है ।
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भय, विपत्ति का उत्पत्ति स्थान है । किन्तु जिसके पास आशाओं का पुल है, वह विपत्ति की महानदी को पार कर जाता है। इस पुल का एक छोर साहस पर टिका है, और दूसरा पुरुषार्थ पर ।
तर्क को अपनी समस्त इच्छाओं के आगे चला, पर उसे सम्भाव्यता की सीमा से आगे न बढ़ने दे ।
तुम दूसरों के दोष देख रहे हो, यह तुम्हारा अधिकार नहीं। किसी के घर में बिना उसकी अनुमति के चले जाना क्या उचित है ?
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किसी की गलतियों को देख कर हँसना तुम्हारा काम नहीं । तुम उससे अपनी त्रुटियों को सुधारो ! और भविष्य के लिए अनुभव ग्रहण करो ।
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कल जिसकी जरूरत है, उससे आज ही काम मत लो ।
अपने को दूसरों से ऊँचा समझना, और तुच्छ समझना — दोनों ही पाप हैं।
अमर डायरी
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