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________________ अपनी विनोद वृत्ति को इतना न बढ़ा कि मन उन्मत्त हो जाय; और न दुःख को इतना प्रबल होने दे कि हृदय ही दब जाय । * * * उसे मृत्यु का क्या डर ? जिसने कभी कोई बुरा काम न किया हो। और उसके जीवन में आनन्द क्या ? जिसने कभी किसी की भलाई न की हो ! बुराई से भय, और भलाई से आनन्द - जीवन का यही प्रशस्त नियम है । * भय, विपत्ति का उत्पत्ति स्थान है । किन्तु जिसके पास आशाओं का पुल है, वह विपत्ति की महानदी को पार कर जाता है। इस पुल का एक छोर साहस पर टिका है, और दूसरा पुरुषार्थ पर । तर्क को अपनी समस्त इच्छाओं के आगे चला, पर उसे सम्भाव्यता की सीमा से आगे न बढ़ने दे । तुम दूसरों के दोष देख रहे हो, यह तुम्हारा अधिकार नहीं। किसी के घर में बिना उसकी अनुमति के चले जाना क्या उचित है ? * * किसी की गलतियों को देख कर हँसना तुम्हारा काम नहीं । तुम उससे अपनी त्रुटियों को सुधारो ! और भविष्य के लिए अनुभव ग्रहण करो । * कल जिसकी जरूरत है, उससे आज ही काम मत लो । अपने को दूसरों से ऊँचा समझना, और तुच्छ समझना — दोनों ही पाप हैं। अमर डायरी Jain Education International For Private & Personal Use Only 43 www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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