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दीनता क्या है? अपनी छिपी शक्तियों को नहीं समझना !
चौथे गुणस्थान में भक्ति दशा (श्रद्धा) की मुख्यता है। पाँचवें, छठवें गुणस्थान में वैराग्य दशा की मुख्यता है।
सातवें (अप्रमत्त संयत) गुण स्थान से लेकर तेरहवें (क्षीणमोह) गुणस्थान तक ज्ञान एवं वीतराग दशा की मुख्यता है ।
अल्पतम शब्दों में गुणस्थान क्रम का यह सारांश साधना का क्रमबद्ध विकास मंत्र है।
"मैं किसी का उपकार कर रहा हूँ"-इस भावना से मुक्त होकर जो उपकार करता है वह उत्तम मनुष्य है।
जो उपकार-बुद्धि से किसी की सहायता करता है, वह अधम मनुष्य है । जो प्रत्युपकार (बदले) की भावना से किसी की सहायता करता है, वह जघन्य मनुष्य है।
जो सिर्फ अपने स्वार्थ या नाम के लिए ही किसी की सहायता करता है, वह अधमाधम मनुष्य है।
और जो किसी भी उद्देश्य से किसी की भी सहायता नहीं करता; वह तो मनुष्य नहीं, पशु के समान है।
व्यक्ति नहीं, व्यक्ति का आचरण मुख्य है । कागज में छपी आगम, त्रिपिटक या वेद की पुस्तक को भारतीय संस्कृति की आधारशिला नहीं माना जा सकता। वास्तव में किसी भी शास्त्र की पुस्तक भारतीय संस्कृति का आधार नहीं है, अपितु शास्त्र का बताया हुआ मार्ग ही आधार है।
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अमर डायरी
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