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आज का समाज, बाप और बेटे, सास और बहू, पति और पत्नी यदि इस महामंत्र को समझ लें, तो अनेक समस्याएँ सहज ही सुलझ जाएँ ।
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मिट्टी का दिया, जो प्रकाश फैला रहा है, वह क्या है ? तेल, बाती और लौ ! इनका योग ही तो प्रकाश है !
मनुष्य जो ऐश्वर्य का अम्बार लगा रहा है, वह क्या है ? प्रारब्ध, प्रतिभा और पुरुषार्थ ! इनका संयोग ही तो वैभव और सुख का जनक है 1
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मनुष्य के मन का विश्वास इतना नाजुक है कि यदि एक बार टूटा कि उसे सदा के लिए असन्तोष, निराशा और निष्क्रियता दबा बैठती है ।
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तुम्हारा मुँह, उस जौहरी की तिजौरी है जिसमें बड़े कीमती जवाहरात भरे हैं इसे खुला मत छोड़ो। बहुत ही जरूरत पड़ने पर खोलो और फिर तुरन्त बन्द कर दो ।
वचन और काय योग पर हठ योग चल सकता है, मन पर नहीं ! मन को तो समझा-बुझाकर ही अभ्यस्त करना पड़ेगा। उस पर राजयोग चलता है ।
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विचारवान मनुष्य को अपने कर्तव्य पथ के प्रति बार-बार शंका एवं तर्क हुआ करता है, और उसके समाधान में वह अपने को तदनुरूप ढालता जाता है ।
मूर्ख मनुष्य दुराग्रही होता है। उसे शंका एवं तर्क कभी नहीं होता। अपने अज्ञान को छोड़कर वह सब कुछ जानता है । अपने को बदलना उसके लिए असंभव है । मूर्ख के हृदय में विचार का तो जन्म ही नहीं होता ।
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नारी ! तुम्हें पुरुष की विवेकशील सहचरी के रूप में नियुक्त किया गया है, उसके विकारों की दासी के रूप में नहीं ।
अमर डायरी
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