________________
'चारित्र' शब्द के मूल में जाएँ तो वह ‘चर' धातु से निष्पन्न हुआ मिलता है। 'चर' का अर्थ है-'गति' । आत्मा स्वभाव से विभाव में गया हुआ है, उसे फिर से स्वभाव में लाना चारित्र है। 'चारित्र' शब्द का प्राकृत में एक रूप ‘चयरित्तं' भी मिलता है, जिसका भाव है विभाव रूप चय से आत्मा को रिक्त अर्थात् खाली करना। _ 'चारित्र' का पूर्ण रूप हुआ ‘स्वभाव में गमन'-'विभाव का त्याग।'
कषाय को क्षीण करने के दो उपाय हैं : पहला उपाय है-कषाय के दोषों का दर्शन । भविष्य में कषाय के जो अशुभ परिणाम आते हैं उन पर चिन्तन करना, उन्हें समझना। यह उपाय तीव्र अवश्य है, किन्तु साधारण आत्माओं के लिए कठिन है।
दूसरा उपाय है--कषाय में उपयोग न जाने देना, मन को दूसरे विषयों में लगाए रखना। यह उपाय मन्द है, यह साधारण आत्माओं के लिए भी सरल है।
. हजारों धर्म-ग्रन्थ और लाखों उपदेश से जो असर नहीं होता, वह असर
कभी-कभी एक सच्चे आचरण से हो जाता है। ___घटना बंगाल की है । मल्लिक सेठ बहुत बड़े धार्मिक व्यक्ति थे। कभी झूठ नहीं बोलते थे। एक बार अपने चार जहाजों में माल भरकर समुद्र में जा रहे थे कि समुद्री डाकू चांचियों ने मध्यरात्रि में धावा बोलकर जहाजों को लूट लिया। चांचियों के सरदार ने पूछा-“सेठ ! अब तुम्हारे पास और क्या है ?"
"बस, अब मेरे पास और कुछ नहीं रहा।" ।
चांचिये सब माल लेकर जाने की तैयारी करने लगे कि सेठ की नजर अंगूठी की तरफ गई। कम से कम दस हजार की अंगूठी होगी वह !
सेठ का मन ग्लानि से भर उठा-आज अनजाने में झूठ बोल दिया कि मेरे पास कुछ नहीं रहा । उसने सरदार को पुकारा-“लो, यह अंगूठी भूल से मेरे पास रह गई थी, लेते जाओ इसे भी।"
सरदार ने अँगूठी हाथ में ली, घुमा-फिराकर देखा उसे । अब उसके भाव भी फिरने लगे, विचारधारा मोड़ खा गई–कहाँ यह सत्यवादी सेठ ! और कहाँ हम अमर डायरी
39
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org