________________
अहिंसा और अनेकान्त . यदि समग्र विश्व का कोई एक धर्म हो सकता है तो वह अहिंसा ही है। प्राण-प्राण के प्रति जो प्रेम है, वही अहिंसा है। नास्तिक और स्वच्छन्दवादी व्यक्ति भी इस धर्म को मानने से इन्कार नहीं कर सकता। यदि निखिल विश्व का कोई एक दर्शन हो सकता है, तो वह अनेकान्त ही है। विचारों का अनाग्रह ही, अनेकान्त है। यह अनेकान्त जब जीवन के धरातल पर उतर आता है, तब समस्त विरोध शान्त हो जाते हैं और संसार में सर्वत्र शान्ति हो जाती है।
समन्वय बनाम शान्ति जीवन को सुन्दर, मधुर और रुचिर बनाने के लिए दो साधनों की आवश्यकता है-विचारों का समन्वय और व्यवहार में शान्ति । जहाँ समन्वय और शान्ति होती है, वहीं जीवन रूपी वृक्ष अंकुरित, पल्लवित, पुष्पित और फलित होता है।
धर्म ही सर्व-मंगल है संसार का प्रत्येक व्यक्ति मंगल की अभिलाषा करता है, अमंगल की अभिलाषा किसी के भी मन में नहीं होती। मंगल क्या है— अहिंसा, संयम और तप, इस त्रिविध धर्म को मंगल कहा जाता है।
संत का कृतित्व संत आदर्श घड़ता है और जनता को देता है। कहा गया है—संत तप के द्वारा समाज को टिकाए रखते हैं। संत के पास प्रेम की पूँजी है, जिसके द्वारा वह जन-मन को हर लेता है, और प्रेम के साथ समझाकर जनता को सन्मार्ग पर लाने का निरन्तर प्रयत्न करता रहता है।
अमर डायरी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org