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साम्प्रदायिक अभिनिवेश अथवा बाह्यचारीय आवेग के कारण धर्म में यदि कुछ विकृत तत्व प्रविष्ट हो गए हैं, और उनके कारण धर्म को बौद्धिक स्पर्श से डरना पड़ता है, तो धर्म गुरुओं को चाहिए कि निर्भयता के साथ उनका परिमार्जन करें। केवल बौद्धिक वर्ग को दोष देते रहने से तो हानि है, लाभ नहीं ।
धन दौलत पाकर भी सेवा
अगर किसी की कर न सका । दया भाव ला दुःखित दिलों के
जख्मों को जो भर न सका । वह नर अपने जीवन में
सुख-शान्ति कहाँ से पाएगा ठुकराता है जो औरों को, स्वयं ठोकरें
अमर डायरी
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जैसा चिन्तन, वैसा जीवन
जो
मनुष्य
निरन्तर किसी गुण - विशेष का ध्यान करता रहता है, एक दिन वह उसमें आ जाता है। अतएव तुम जिस विषय का ध्यान करो, वह उच्च और उत्तम हो, ताकि तुम भी उच्च और उत्तम बन सको ।
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ब्रह्म और माया
जहाँ माया है वहाँ ब्रह्म नहीं, और जहाँ ब्रह्म है, वहाँ माया नहीं। यह नहीं हो सकता कि हृदय में माया भी रहे और ब्रह्म भी रहे। जहाँ प्रकाश रहता है, अन्धकार कैसे रह सकता है? जीवन-विकास के तीन साधन हैं—विश्वास, विचार और आचार | इन तीनों में सन्तुलन और समन्वय की आवश्यकता है } तीनों का सन्तुलित रूप ही विकास है।
खाएगा।
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