________________ में ही कुछ लिख गया है। यदि कभी समय मिल गया तो विस्तार से अनुयोगद्वार पर लिखने की भावना रखता है। परम श्रद्धेय सद्गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुरुकर मुनिजी महाराज का मैं किन शब्दों में ग्राभार व्यक्त करूं। उनकी अपार कृपा सदा मुझ पर रही है। प्रस्तुत प्रस्तावना लिखने में भी उनका पथ-प्रदर्शन मेरे लिए सम्बल रूप में रहा है / अन्त में मैं आशा करता हूँ कि प्रबुद्ध पाठकगण प्रस्तुत प्रागम का स्वाध्याय कर अपने ज्ञान की अभिवृद्धि करेंगे और जीवन को पावन-पवित्र बनायेंगे। -उपाचार्य देवेन्द्र मुनि श्री तिलोकरत्न स्था. जैन धार्मिक परीक्षा बोर्ड आचार्य आनन्द ऋषिजी महाराज मार्ग अहमदनगर (महाराष्ट्र) आचार्यसम्राट् जयन्ती-२६ जुलाई, 1987 [ 47 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org