Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जम्बूद्वीपप्रक्षप्तिसूत्रे लम् 'ईतिबहुले' इतिवहुलम्-ईतयः-अतिवृष्टयनावृष्टि-मूषक-शलम-शुकात्यासन्न राजाः षडुपद्रवाः ताभिर्वहुलम् 'मारिबहुले' मारि बहुलम् मारयो विचिकादयः, ताभिर्बहुलम् 'कुवुठिबहुले' कुवृष्टिबहुलं कुवृष्टयः-कुत्सिताः कर्षकजनानभिलपणीया वृष्टयो वर्षास्ताभिर्बहुलम्, 'अणावुट्टिबहुले' अनावृष्टिबहुलम्-अनावृष्टयः-वर्षणस्याभावाः तामिबहुलम् ‘रायबहुले' राजबहुलम् राजानःआधिपत्यकर्तारो जनास्तैर्बहुलम् 'रोगबहुले' रोगबहुलम् रोगाः-वात-पित्त-कफ विषमताजन्याः ज्वरादयस्तैर्बहुलम् , 'संकिलेसबहुले' संक्लेशबहुलं-संक्लेशाः-शारीरिकमानसिकासमाधयस्तैर्बहुलम् 'अभिक्खणं अभिक्खणं' अभीक्ष्णममीक्ष्णम् वारंवारम् 'संखोहबहुले' संक्षोभबहुलम् संक्षोभाः प्रजानां दण्डपारुष्यादिना चित्तवैकल्यानि तैवबहुलम् इत्थं स्वरूपतः प्रदर्य सम्प्रति प्रमाणत आह-'पाईणयडीणायए' प्राचीनप्रतीचीनाऽऽयतं प्राचीनप्रतीचीनयोः पूर्वपश्चिमदिशोः, आयतं दीर्घम् अत्र प्राक् प्रत्यक्छब्दाभ्यां स्वार्थे खः प्रत्ययस्तस्येनादेशः स च खः,
जनों की जहां पर बहुलता है ऐसा है "ईति बहुले' मारी बहुले कुबुट्ठि बहुले अणाबुट्ठि बहुले रायबहुले रोग बहुले संकीलेस बहुले" अतिवृष्टि अनावृष्टि मूषिक शलभ शुक एवं अत्यासन्नराजा ये छह ईतियां होती हैं इन छह ईतियोंको उपद्रवों के बहुलता जहां पर है ऐसा है इनकी बहुलता भरत और ऐरवत क्षेत्रमें ही होती है, मारी हैजा आदि को है बहुलता जिसमें ऐसा है कर्षककिसान जनों को अनभिलषणीय वर्षाकी बहुलता जिसमे है ऐसा है अनावृष्टि वर्षा के अभाव का जहां प्रायः सद्भाव है ऐसा है अधिपतित्व करने वाले राजा जनो की जहां पर बहुलता है ऐसा है वात पित्त कफ की विषमता जन्य रोगों का सद्भाव जहां पर है ऐसा है शारीरिक और मानसिक असमाधियों को बहुलता जहां पर है ऐसा है 'अभिक्खणं अभिक्खणं संखोह वहुले पाईणपडीणायए उदीणदाहिणं वित्यिण्णे उत्तरओ पलिअंक संठाण संठिए'
और निरन्तरबार बार जहां पर प्रजा जनों के चित्तको क्षु मत करने वाले दण्डकी कठोरताएँ प्रदेश छ. "ईति बहुले, मारि बहुले, कुबुट्ठी बहुले. अणावुद्धि बहुले राय बहुले, रोग बहुले, संकिलेसबहुले" मति वृष्टि, नावृष्टि, भूष, uaH, शु तेभर मत्यासन्न રાજાઓ આમ ૬ ઈતિઓ હોય છે. આ ૬ ઈતિઓના ઉપદ્રની જેમાં બહુલતા છે એ આ ભરત પ્રદેશ છે. એરવત પ્રદેશમાં પણ એવું જ થાય છે. મારિ–કોલેરા વગેરે જયાં વિશેષ રૂપમાં થાય છે એ આ પ્રદેશ છે. કર્ષક–ખેડૂતે ના માટે અનિચ્છિત વર્ષો જયાં થતી રહે છે અને આ પ્રદેશ છે અનાવૃષ્ટિ-વર્ષાના અભાવને જયાં પ્રાયઃ સદભાવ છે એવે આ પ્રદેશ છે. અધિપતિત્વ કરનારા રાજાઓની જયાં બહલતા છે એ આ પ્રદેશ છે. વાત, પિત્ત, કફની વિષમતાથી જયાં રોગે વધારે પડતા ફાટી નીકળે છે એ આ પ્રદેશ છે. शारीR, अने मानसि समाधानी सतत यो छ मेवा मा प्रदेश छ. "अभि क्खण २ संखोहबहुले, पाईपडीणायए उदोणदाहिणवित्थिपणे उत्तरओ पलिअंक संठाण संठिए" मन नित२-चार वा२ या जनानायित्तने ४०८ मापना। उनी-शिक्षानी
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા