Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे प्राप्ता नारकादयः केबलभावप्राणैः प्राणिनो विनष्टसकलकर्मसङ्गाः सिद्धाः सन्ति, जीवानां-जीयास्तिकायानां प्रज्ञापना जीवप्रज्ञापना, न जीवा अजीवा:जीवविपरीतस्यरूपाः, ते च धर्मास्तिकायाधर्मास्तिकायाकाशस्तिकाय पुग्दलास्तिकायाद्धासमयस्वरूपास्तेषां प्रज्ञापना-अजीवप्रज्ञापना, चकारद्वय मुभयोरपि प्रज्ञापनयोः प्राधान्यख्यापनार्थमवसेयम्, न खल्वत्र अन्यतरस्याः प्रज्ञापनायाः गौणत्वं वर्तते, अपितु उभयोरेय प्राधान्यमित्याशयः (स्. १)
तदेवं रीत्या सामान्यतः प्रज्ञापनाद्वयमुपन्यस्य साम्प्रतं विशेष स्वरूपाचगमार्थ जीवप्रज्ञापनायाः प्रथमोपात्तत्वेऽपि सूची कटाहन्यायेन अल्पवक्तव्यतया अजीवप्रज्ञापनाया एव प्रथम प्रतिपिपादयिषया तद् विषयकं प्रश्नोत्तरसूत्राह
मूलम्-से किं तं अजीवपन्नवणा? अजीवपन्नवणा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-रूवि अजीवपन्नवणा य अरूपि अजीव पन्नवणा य ॥सू० २॥ हैं और समस्त कर्मों को नष्ट कर देने वाले सिद्ध भावप्राणों के कारण प्राणी कहलाते हैं और धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, और अद्धा समय, इन जीव से विपरीत जीवों की प्ररूपणा को अजीव प्रज्ञापना कहते हैं। सूत्र में दिया हुआ (च) शब्द दानों प्रज्ञापनाओं की प्रधानता को सूचित करने के लिए है। दोनों में कोई भी गौण नहीं है, किन्तु दोनों ही प्रधान है, यह 'च' पद का आशय है ॥१॥
इस प्रकार सामान्य रूप से दो प्रज्ञापनाओं का निर्देश करके अब उनका विशेष स्वरूप बतलाने के लिए अगला सूत्र कहते हैं। यद्यपि जीव प्रज्ञापना का निर्देश पहले किया गया है, मगर सूची कटाह, न्याय से, अल्प वक्तव्यता होने के कारण पहले अजीव प्रज्ञापना का निरूपण करने की इच्छा से तद्विषयक पश्नोत्तर कहते हैं। ધમસ્તિકાય અધર્માસ્તિકાય, આકાશાસ્તિકાય, પગલાસ્તિકાય અને અધાસમય આ જીવાથી વિપરીત જેની પ્રરૂપણાને અજીવ પ્રજ્ઞાપના કહે છે. सूत्रमा २५वामा मावेस 'च' श मन्ने प्रज्ञापनामानी प्रधानतानु સૂચન કરવા માટે છે. બંનેમાં કોઈ પણ ગૌણ નથી. પરંતુ બંને જ प्रधान छ. से 'च' ५४ने। २माशय छे. ॥ १ ॥
આ પ્રમાણે સામાન્ય રૂપથી બે પ્રજ્ઞાપનને નિર્દેશ કરીને હવે તેઓના વિશેષ સ્વરૂપ બતાવવા માટે આગળનું સૂત્ર કહે છે. જો કે જીવ પ્રજ્ઞાપનનો નિર્દેશપ્રથમ કરાવે છે. પરંતુ સૂચિકટાહ, ન્યાયથી અ૯પ વકતવ્યતા હોવાને કારણે પહેલા અજીવ પ્રજ્ઞાપનાનું નિરૂપણ કરવાની ઈચ્છાથી તદ્વિષયક પ્રશ્નોત્તર કરે છે.
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧