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लोक-विजय
११४. [इष्ट वस्तु का] लाभ होने पर मद न करे।
११५. [इष्ट वस्तु का] लाभ न होने पर शोक न करे।
११६. [वस्तु का] अधिक मात्रा में लाभ होने पर भी उसका संग्रह न करे।
११७. परिग्रह से अपने-आप को दूर रखे।"
११८. तत्त्वदर्शी [वस्तुओं का ]परिभोग अन्यथा करे [जैसे तत्त्व नहीं जानने वाला
मनुष्य करता है, वैसे न करे] ।"
११६. यह (अमूर्छा का) मार्ग तीर्थंकरों के द्वारा प्रतिपादित है। १२०. जिससे कुशल पुरुष इस (परिग्रह) में लिप्त न हो।
-ऐसा मैं कहता हूं।
काम की अनासक्ति १२१. काम दुर्लध्य हैं।
१२२. जीवन को बढ़ाया नहीं जा सकता-छिन्न आयुष्य को सांघा नहीं जा
सकता।
१२३. यह पुरुष काम-कामी है-काम-भोगों की कामना करने वाला है।
१२४ काम-कामी पुरुष [मन का संकल्प पूर्ण न होने पर] शोक करता है, [काम
की अप्राप्ति या वियोग होने पर शरीर से सूख जाता है, आंसू बहाता है, पीड़ा और परिताप का अनुभव करता है।
१२५. दीर्घदर्शी पुरुष लोकदर्शी होता है। वह लोक के अधोभाग को जानता है,
ऊर्श्वभाग को जानता है और तिरछे भाग को जानता है।"
१२६. [काम-भोगों में ] आसक्त पुरुष अनुपरिवर्तन कर रहा है (उत्तरोत्तर कामों
के पीछे चक्कर लगा रहा है।"
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