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विमोक्ष
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१३. वह हरियाली पर न सोए; स्थण्डिल (हरित और जीव-जन्तु-रहित स्थान)
को देखकर वहां सोए । वह अनाहार भिक्षु [शरीर आदि का विसर्जन कर, [भूख, प्यास या अन्य परीषहों से] स्पृष्ट होने पर उन्हें सहन करे।
१४. इन्द्रियों से ग्लान (श्रान्त) होने पर वह मुनि मात्रा-सहित [हाथ-पैर आदि
का] संकोच (परिवर्तन) करे । जो अचल और समाहित होता है, वह ऐसा करता हुआ धर्म का अतिक्रमण नहीं करता।
१५. वह [बैठा या लेटा हुआ श्रान्त हो जाए, तब शरीर-संधारण के लिए गमन
और आगमन (अभिक्रमण और प्रतिक्रमण) करे, [हाथ, पर आदि को] सिकोड़े और फैलाए। [यदि शक्ति हो, तो इस अनशन में भी अचेतन की भांति निश्चेष्ट लेटा रहे।
१६. वह लेटा-लेटा श्रान्त हो जाए, तो चंक्रमण करे अथवा सीधा खड़ा हो जाए।
खड़ा-खड़ा श्रान्त हो जाए, तो अन्त में बैठ जाए।
१७. इस असाधारण मरण की उपासना करता हुआ वह इन्द्रियों का सम्यग्
प्रयोग करे-इष्ट और अनिष्ट विषयों में राग-द्वेष न करे । घुन और दीमक वाले काष्ठ-स्तम्भ का सहारा न ले। घुन आदि से रहित और निश्छिद्र (प्रकट) काष्ठ-स्तम्भ की एषणा करे।
१८. जिसका सहारा लेने से वयं (कर्म) उत्पन्न हो, उसका सहारा न ले। उससे
अपने-आप को दूर रखे; सब स्पर्शों को सहन करे ।
प्रायोपगमन १६. यह (प्रायोपगमन) अनशन इंगित मरण से उत्तमतर है; जो उक्त विधि से
[इसका] अनुपालन करता है, वह समूचे शरीर के अकड़ जाने पर भी अपने स्थान से चलित न हो।
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