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उपधान-श्रुत
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२०. भगवान् अशन और पान की मात्रा को जानते थे। वे रसों में लोलुप नहीं
थे। वे भोजन के प्रति संकल्प नहीं करते थे। वे आंख का भी प्रमार्जन नहीं करते थे। वे शरीर को भी नहीं खुजलाते थे।
२१. भगवान् चलते हुए न तिरछे (दाएं-बाएं) देखते थे और न पीछे देखते थे।
वे मौन चलते थे। पूछने पर भी बहुत कम बोलते थे। वे पंथ को देखते हुए प्राणियों की अहिंसा के प्रति जागरूक होकर चलते थे।
२२. भगवान् वस्त्र का विसर्जन कर चुके थे। वे शिशिर ऋतु में चलते, तब हाथों
को फैलाकर चलते थे। उन्हें कन्धों में समेट कर नहीं चलते।
२३. मतिमान् माहन काश्यपगोत्री महर्षि महावीर ने संकल्प-मुक्त होकर पूर्व प्रतिपादित विधि का आचरण किया।
-ऐसा मैं कहता हूं।
द्वितीय उद्देशक
भगवान् द्वारा आसेवित आसन और स्थान
[जम्बू ने सुधर्मा से पूछा-] १. भन्ते ! चर्या के प्रसंग में कुछ आसन और वास-स्थान बतलाए गए हैं, किन्तु __ अब उन सब आसनों और वास-स्थानों को बताएं, जिनका महावीर भगवान्
ने उपयोग किया था।
२. भगवान् कभी शिल्पी-शालाओं (कुम्भकार-शाला, लोहकार-शाला आदि) में रहते थे ; कभी सभाओं, प्याउओं, पण्य-शालाओं (दुकानों में) रहते थे। वे कभी कारखानों में और कभी पलाल-मण्डपों में रहते थे।
३. भगवान् कभी यात्री-गृहों और आरामगृहों में रहते थे । कभी गांव में रहते थे
और कभी नगर में, कभी श्मशान में और कभी शून्य गृह में रहते थे तथा कभी-कभी वृक्ष के नीचे रहते थे।
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