Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 362
________________ उपधान-श्रुत ३३५ ८. जैसे हाथी संग्राम-शीर्ष में शस्त्र से विद्ध होने पर भी खिन्न नहीं होता, किन्तु युद्ध का पार पा जाता है, वैसे ही भगवान् महावीर ने लाढ प्रदेशों में परीषहों का पार पा लिया। उन्हें वहां कभी-कभी ग्राम नहीं मिला, निवास के लिए स्थान भी नहीं मिला। ९. भगवान् नियत वास और नियत आहार का संकल्प नहीं करते थे। वे प्रयोजन होने पर निवास या आहार के लिए गांव में जाते। उसके भीतर प्रवेश से पूर्व ही कुछ लोग उन्हें रोक देते, प्रहार करते और कहते-यहां से आगे कोई दूसरा स्थाने देखो।" १०. वहां कुछ लोग दण्ड, मुष्टि, भाला आदि शस्त्र, चपेटा, मिट्टी के ढेले और कपाल (खप्पर) से भगवान् पर प्रहार कर, 'हन्त ! हन्त !' कहकर चिल्लाते। ११. कुछ लोग मांस काट लेते। कभी-कभी शरीर पर थूक देते; [प्रतिकूल] परीषह देते ; कभी-कभी उन पर धूल डाल देते। १२. कुछ लोग ध्यान में स्थित भगवान् को ऊंचा उठाकर नीचे गिरा देते। कुछ लोग आसन से स्खलित कर देते । किन्तु भगवान् शरीर का विसर्जन किए हए, आत्मा के लिए समर्पित, कष्ट-सहिष्णु और सुख-प्राप्ति के संकल्प से मुक्त थे। [अतएव उनका समभाव विचलित नहीं होता था। २० १३. जैसे कवच पहना हुआ योद्धा संग्राम-शीर्ष में विचलित नहीं होता, वैसे ही संवर का कवच पहने हुए भगवान् महावीर कष्टों को झेलते हुए ध्यान से विचलित नहीं होते थे । वे अविचलित भाव से घूमते रहे । १४. मतिमान् माहन काश्यपगोत्री महर्षि महावीर ने संकल्प-मुक्त होकर पूर्व प्रतिपादित विधि का आचरण किया। -ऐसा मैं कहता हूं। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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