Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 379
________________ ३५२ आयारो उच्चागोय (उच्चगोत्र) (२।४९) श्लाध्य पद उच्चालइय (उच्चालगिक) (३।६३) परम तत्त्व के प्रति लगा हुआ उड्ढेठाण (ऊर्ध्व-स्थान) (५८१) सर्वांगासन आदि उद्देस (उद्देश) (२०७३) निर्देश उम्भिय (उद्भिज्ज) (१।११८) पृथ्वी को भेदकर उत्पन्न होने वाले जीव उम्मग्ग (उन्मज्जन) (६।६) ऊपर आना, विवर उवाहि (उपाधि) (३।१९) पर-संयोग से होने वाला पर्याय उवेहा (उपेक्षा) (३।५५) निकटता से देखना, आचरण करना एज (एजः) (१।१४५) वायु ओए (ओजः) (५॥१२६) अकेला ओए (ओजः) (६।१००) पक्षपात-रहित ओमाण (अवमान) (९।१।१९) भोज-विशेष ओमोयरिय (अवमौदर्य) (६।३७) अल्पीकरण ओववाइय (औपपातिक) (१२) पुनर्जन्म-सम्बन्धी ओववाइब (औपपातिक) (१।११८) अकस्मात् उत्पन्न होने वाले-देवता और नारक ओह (ओघ) (२।७१) संसार-प्रवाह कम्म-समारम्भ (कर्म-समारम्भ) (१७) क्रियात्मक प्रवृत्ति कहंकह (कथंकथा) (८।६।१०७) संशय किरिय (क्रिया) (९।१।१६) आत्मवाद, आस्तिकता किवण (कृपण) (२०४८) विकलांग याचक कुशल (कुशल) (२०४८) तीर्थंकर केयण (केयण) (३।४२) चलनी कोल (कोल) (८1८।१७) धुन खेयन्न (क्षेत्रज्ञ) (१।६७) (आत्मज्ञ) Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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