Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 384
________________ शब्दकोष ३५७ वंक (वक्र) (१।१८) असंयममय वक्खाय-रय (व्याख्यात-रत) (५।१२२) सूत्र और अर्थ में रत वज्ज (वयं) (८८।१८) कर्म वण्ण (वर्ण) (५।५३) यश (८।८।२३) संयम वय (वय) (२।१५२) गति ववहार (व्यवहार) भिन्नताकारक व्यपदेश -भेदसूचक, नामगोत्रसूचक आदि वसु (वसु) (६।३०) महाव्रत, मुनि-धर्म वसुम (वसुमान्) (१।१७५) बोधि-सम्पन्न विअंति-कारए (व्यंतिकारक) (८।४।६०) अन्त-क्रिया करने वाला, पूर्ण कर्म-क्षय ___ करने वाला विओवाए (व्यवपात) (६।११३) गिरना विणय (विनय) (१।१७२) आचार । वितद्द (वितर्द) (६।९२) हिंसक विधूतकप्प (विधूतकल्प) (३।६०) धुत आचार वाला विप्परामस इ (विपरामृषति) (२।१५०) स्पर्श (आसेवन) करता है विप्पिया (दे) (६।१०) विघ्न-युक्त विमोह (विमोह) (८८१) तीन प्रकार का अनशन वियर्ड (दे) (९।१।१९) प्रासुक, निर्जीव विवेग (विवेक) (५।७३) विलय, अभाव विसोत्तिया (विस्रोतसिका) (१।३६) चित्त की चंचलता विह (देशी शब्द) (८।४।५८) मार्ग वेयव (वेदवत्) (३।४) शास्त्र का अधिकारी वेयावडिय (वैयापृत्य) (८।५।७६) व्यापृत होना, सेवा करना संकमण (संक्रमण) (२०६१) सेतु संखडि (देशी शब्द) (९।१।१६) सरस भोजन संखा (संख्या) (६।८०) प्रशा संगंथ (संग्रन्थ) (२।२) स्वजन के स्वजन Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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