Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 385
________________ ३५८ संघड (देशी शब्द ) ( ४१५२) निरन्तर संचिक्खति (संतिष्ठते) (६।३९) अनुशीलन करता है संतरूत्तर ( सान्तरोत्तर) ( ८|४|५१) १. भीतरी और बाहरी वस्त्र २. अधोवस्त्र, उत्तरीय वस्त्र संथव (संस्तव ) ( ४|१७) परिचय, समागम संय (संस्तुत) (212) सहवासी (२1१०६) अवसर संधि (संधि) (२।१२७ ) शरीर के जोड़ ( ३।५१ ) स्वरूप (५/४१ ) ज्ञान, दर्शन, चारित्र की समन्वित आराधना ( ५६८ ) ग्रन्थि, समस्या संवडे (संवृत्त ) ( ||२२) देह को विसर्जित करने वाला संहिया ( संहित) ( 8191५) एकत्र सगडब्भि (स्वकृतभिद्) (३।७३) स्वकृत का भेदन करने वाला सण ( सन्न) (२।३३ ) निमग्न सण्णा (संज्ञा ) ( 119 ) ज्ञान - चेतना सणिचओ (संनिचय) (२१८) चीनी, घृत आदि पदार्थों का संग्रह सही ( सन्निधि) (२1१८) दूध, दही आदि पदार्थों का संग्रह सत्य (शस्त ) (२३) हिंसक सत्थ ( शस्त्र ) ( ३।१७) आसक्ति सपेहा (स्वप्रेक्षा ) ( २/४३ ) अपना चिन्तन समण्णाग ( समन्वागत ) ( १।१७५ ) सत्यपूर्ण समणुण्ण (समनुज्ञ, समनोज्ञ ) (५/१६) सम्यग् अनुज्ञा वाला, सम्यग् आचार वाला समणुण्ण (समनुज्ञ) ( ८1919 ) दृष्टि और वेश की दृष्टि से समर्थित समयं (समताम् ) ( ३३ ) समता को समस्य (समय) (४।४४) शरीर, कर्म - शरीर सममाण (समायत्) (४।१००) जाता हुआ सम्मुच्छिम ( सम्मुछिम) (१।११८) अगर्भज जीव सहपमाय (स्वप्रमाद ) ( २।५५) अपना प्रमाद सहसम्मुइ (स्व-संस्मृति) (१1३) अपनी स्मृति सागार (सामयिक शब्द ) ( ५/१०, ९1१1६) संभोग साय (स्वाद्य) (४२५) प्रिय सासए ( शाश्वत ) ( ८८२४) स्थायी सीय - फास (शीत - स्पर्श ) ( ८ । ४ । ५७) अनुकूल परीषह Jain Education International 2010_03 आयारो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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