Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 381
________________ ३५४ णीयागोय ( नीचगोत्र ) (२।४९) अवहेलना - पद त हाय ( तथागत) (३।६०) वीतरागता की साधना करने वाले तिरिच्छ ( तिर्यक् ) (२।१३३) मध्य तिविज्ज ( त्रिविध ) ( ३।२८) तीन विद्याओं को जानने वाला तुच्छय (तुच्छक) (२।१६७) साधना - शून्य तुट्ट ( त्रोटक ) ( ६।११२) तोड़ने वाला तस ( स ) ( १।११९) गति करने में समर्थ प्राणी थ थंडिल ( स्थंडिल ) ( ८1७) जीवजन्तु - रहित स्थान दण्ड (दण्ड ) (१।६९ ) हिंसक दम (दम) (२०५९) शान्ति दविअ ( द्रव्य, द्रविक) (१।१४६) देहासक्ति - मुक्त दिट्ठ ( दृष्ट ) ( ४1६) विषय दीहलोग (दीर्घलोक ) (१।६७) अग्नि दुक्ख (दु:ख) (२।६६) कर्मकर दुगं छणा ( जुगुप्सा) (१।१४५ ) संयम दुव्वसु (दुर्वसु ) (२।१६६ ) १. दरिद्र २. मोक्ष-गमन के लिए अयोग्य ३. साधना में दुःखपूर्ण वास करने वाला दूरालय ( दूरालगिक) (३।६३) दूर लगा हुआ Jain Education International 2010_03 ध ध्रुवचारिणो (ध्रुवचारी ) ( २।६१) मोक्ष की ओर धूयवाद (धुतवाद) (६।२४) कर्म - शरीर के प्रकम्पन की विशेष पद्धति, परित्याग न तूम (देशी शब्द ) ( ८|४ | २४ ) माया, वंचना का आवरण आयारो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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