Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 378
________________ शब्दकोष अब्भाइक्खेज्जा (अभ्याख्यायेत) (१।३९) अस्वीकार करना चाहिए अमुणी (अमुनि) (३।१) अज्ञानी अरइ (अरति) (२।२७) चैतसिक उद्वेग अरिहए (अर्हति) (३।४२) चाहता है असंदीण (असंदीन) (६७२) अप्लावित असमणुन्न (असमनुज्ञ) (८।१।१) दृष्टि और वेश की दृष्टि से असमर्थित असरण (अस्मरण) (६।१।१०) स्मृति नहीं लगाना अस्साय (अस्वाद्य) (१११२२) अरोचनीय, अनभिलषणीय अहोविहार (अहोविहार) (२।१०) संयम आउट्टि (आकुट्टि, आवृत्ति) (५।७३) अविधिपूर्वक आएस (आदेश) (२।१०४) पाहुना आकेवलिअ (आकैवलिक) (६।३४) द्वंद्व-युक्त आणक्खेस्सामि (अनवेषयिष्यामि) (८।५७७) आहार आदि की गवेषणा __ करूंगा आणा (आज्ञा) (१।३८) तीर्थंकर या अतिशयज्ञानी के वचन आणुपुव्वी (आनुपूर्विक) (८।६।१) क्रमशः प्राप्त आतीत? (आत्तार्थ) (८।६।१०७) प्राप्तार्थ, कृतार्थ आदाण (आदान) (२।१०१) संयम आमगन्ध (आमगन्ध) (२।१०८) अशुद्धभोजी आय-बल (आत्म-बल) (२०४१) शरीर-बल आयाण (आजानीहि) (६।२४) जानो आयाण (आदान) (६।३५) इन्द्रियां आयाणिज्ज (आदानीय) (२०७२) संयम आयाणीय (आदानीय) (१२४) संयम आरभे (आरम्भ) (२।१८३) आचरण आराम (आराम) (५।११७) आत्म-रमण आवकहा (यावत्कथा) (९।१।२) मृत्यु-पर्यन्त आसव (आश्रव) (४।१२) कर्म-बन्ध करने वाला, कर्म-बन्ध का हेतु आहच्च (आहृत्य) (१९८५) सम्मुखीभूय इत्तरिय (इत्वरिक) (८।६।१०६) गति-युक्त Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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