Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 360
________________ उपधान-श्रुत तृतीय उद्देशक भगवान के उपसर्ग और परीषह १. भगवान् [लाढ देश में] घास की चुभन, सर्दी, भयंकर गर्मी, डांस और मच्छर का काटना-इन नाना प्रकार के कष्टों को सदा सम्यग् भाव से सहन करते थे।५ २. दुर्गम लाढ देश के वज्रभूमि और सुम्हभूमि नामक प्रदेशों में भगवान ने बिहार किया। वहां उन्होंने तुच्छ बस्ती और तुच्छ आसनों का सेवन किया।१६ ३. लाढ के जनपदों में भगवान् ने अनेक उपसर्गों का सामना किया। उन जनपदों के लोगों ने भगवान् पर अनेक प्रहार किए। वहां का भोजन प्रायः रूखा था। कुत्ते भगवान् को काट खाते और आक्रमण करते ।१० ४. कुत्ते काटने आते या भौंकते, तब कोई-कोई व्यक्ति उन्हें रोकता, किन्तु बहत सारे लोग श्रमण को कुत्ते काट खाएं, इस भावना से 'छू-छू' कर कुत्तों को बुलाते और भगवान् के पीछे लगाते। ५. ऐसे जनपद में भगवान् ने [छः मास तक] विहार किया। वज्रभूमि के बहुत लोग रूक्षभोजी होने के कारण कठोर स्वभाव वाले थे। उस जनपद में कुछ श्रमण लाठी और नालिका' पास में रखकर विहार करते थे। ६. इस प्रकार विहार करने वाले श्रमणों को भी कुत्ते काट खाते और नोंच डालते । लाढ देश के गांवों में विहार करना सचमुच कठिन था। ७. भगवान् प्राणियों के प्रति होने वाले दण्ड (हिंसा) का परित्याग और अपने शरीर का विसर्जन कर विहार कर रहे थे। वहां भगवान् तीखे वचनों को ज्ञानपूर्वक सहन करते थे। ४ लाठी शरीर-प्रमाण होती है। + नालिका शरीर से चार अंगुल बड़ी होती है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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