Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 369
________________ टिप्पण ११२ १. भगवान् महावीर ने अनुधर्म का प्रवर्तन किया था। इसके दो लक्षण हैं १. अहिंसा, २. सहिष्णुता। ११३ २. भगवान् के शरीर पर अनुवासित सुगन्धी द्रव्यों की गंध बहुत मोहक थी। उसमें आशक्त होकर बहुत सारे तरुण भगवान् के पास आते और सुगंधी द्रव्य की याचना करते। भगवान् मौन थे; इसलिए उन्हें कोई उत्तर नहीं देते। इससे रुष्ट होकर वे भगवान् के प्रति आक्रोश प्रकट करते-'क्या देखते हो, देते नहीं ?' भगवान् फिर मौन रहते। वे मौन से खिसियाकर अप्रिय व्यवहार करते। ___ भगवान् ध्यान-मुद्रा में खड़े रहते। उनके स्वेद और मल से रहित सुन्दर शरीर तथा सुगन्धित निःश्वास वाले मुख से स्त्रियां आकृष्ट हो जातीं । वे आकर पूछतीं-आप कहां रहते हैं ? यह सुगन्धित द्रव्य कहां मिलता है ? कौन बनाता है ? भगवान् मौन रहते। इस प्रकार उनका शरीर तथा पूर्वकृत अनुवासन उनके लिए उपसर्ग का हेतु बन रहा था। (आचारांग चूर्णि, पृ० ३००) ૧૪ ३. भगवान् पहले वस्त्र-सहित दीक्षित हुए, फिर निर्वस्त्र हो गए। यह सिद्धान्त के आधार पर किया गया था। किन्तु उत्तरकालीन परम्परा के अनुसारभगवान् सुवर्णवालुका नदी के तट पर जा रहे थे। नदी के प्रवाह में बहकर आए हए कांटों में उनका वस्त्र उलझकर गिर गया। एक ब्राह्मण ने वह वस्त्र उठा लिया। वह वस्त्र भगवान् के कंधे पर तेरह महीने तक रहा । दीक्षा के समय जैसे रखा वैसे ही पड़ा रहा और कांटों में उलझ कर गिर पड़ा, तब भगवान ने उसे छोड़ दिया। १. देखें, सूयगडो, १।२।१४ सूत्र और वृत्ति । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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