Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 346
________________ उपघान-श्रुत ३१९ प्रथम उद्देशक भगवान् की चर्या १. [सुधर्मा ने कहा-जम्बू! ] श्रमण भगवान् महावीर की विहार-चर्या के विषय में मैंने जैसा सुना है, वैसा मैं तुम्हें बताऊंगा। भगवान् ने वस्तु-सत्य को जानकर [घर से अभिनिष्क्रमण किया] । वे हेमंत ऋतु में [मृगसिर कृष्णा दशमी के दिन] दीक्षित होकर [क्षत्रियकुण्डपुर से] तत्काल विहार कर गए। २. [दीक्षा के समय भगवान्एक शाटक थे--कंधे पर एक वस्त्र धारण किए हुए थे । भगवान् ने संकल्प किया-] "मैं हेमन्त ऋतु में इस वस्त्र से शरीर को आच्छादित नहीं करूंगा।" वे जीवन-पर्यन्त सर्दी के कष्ट को सहने का निश्चय कर चुके थे । यह उनकी अनुमिता [धर्मानुगामिता] है।' ३. [अभिनिष्क्रमण के समय भगवान् का शरीर दिव्य गोशीर्ष चन्दन और सुगन्धी चूर्ण से सुगन्धित किया गया था।] [उससे आकर्षित होकर] भ्रमर आदि प्राणी आते । भगवान् के शरीर पर बैठकर रसपान का प्रयत्न करते। [रस प्राप्त न होने पर] क्रुद्ध होकर भगवान् के शरीर पर डंक लगाते। यह क्रम चार मास से अधिक समय तक चलता रहा। ४. भगवान् ने तेरह महीनों तक उस वस्त्र को नहीं छोड़ा। फिर अनगार और त्यागी महावीर उस वस्त्र को छोड़ अचेलक हो गए। ४ देखें, गाथा ४ की टिप्पण। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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