Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 339
________________ ३१२ आयारो वर्ष से साठ वर्ष तक तथा तृतीय अवस्था इकसठ वर्ष से जीवन-पर्यन्त की होती है। परिव्राजक बीस वर्ष से कम अवस्था वाले को प्रवजित नहीं करते थे । वैदिक लोग अन्तिम अवस्था में संन्यास ग्रहण करते थे। बुद्ध ने बीस वर्ष से कम उम्र वालों को उपसम्पदा (दीक्षा) देने का निषेध किया है (विनय-पिटक, भिक्खु पातिमोख, पाचित्तिय ६५), किन्तु कौआ उड़ाने में समर्थ पन्द्रह वर्ष से कम उम्र के बच्चे को श्रामणेर बनाने की अनुमति दी है (विनय-पिटक, महावग्ग, महास्कन्धक, १।३।८)। किन्तु जैन परम्परा में दीक्षा की योग्यता आठ वर्ष और तीन मास की अवस्था के बाद स्वीकृत थी। सूत्र-१७ ६. बौद्ध भिक्षु स्वयं भोजन नहीं पकाते थे, किन्तु दूसरों से पकवाते थे । विहार आदि का निर्माण करते और करवाते थे, मांस खाते थे और उसमें दोष नहीं मानते थे। कुछ भिक्षु संघ के निमित्त हिंसा करने में दोष नहीं मानते थे। कुछ भिक्षु वनस्पतिकाय की हिंसा नहीं करते थे। कुछ भिक्षु औद्देशिक आहार नहीं लेते थे, किन्तु सचित्त जल पीते थे। कुछ भिक्षु सचित्त जल पीते थे, किन्तु उससे स्नान नहीं करते थे। प्रस्तुत सूत्र इन परम्पराओं की ओर इंगित करता है । सूत्र-३० ७. प्रथम और चरम अवस्था में भी प्रव्रज्या ली जाती थी। किन्तु, अधिकांशतः प्रव्रज्या मध्यम वय में ली जाती थी। भुक्तभोगी मनुष्य का भोग-सम्बन्धी कुतूहल निवृत्त हो जाता है; अत: वह वैराग्य-मार्ग में सुखपूर्वक ठहर सकता है। उसका ज्ञान पटुतर हो जाता है । इसलिए मध्यम अवस्था का उल्लेख किया गया है। प्रायः गणधर मध्यम अवस्था में प्रवजित हुए थे। भगवान् महावीर भी प्रथम अवस्था पार कर प्रवजित हुए थे। सूत्र-३१ ८. सम्बोधि-प्राप्त मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं-स्वयंसंबुद्ध, प्रत्येकबुद्ध और बुद्ध-बोधित । यह सूत्र बुद्ध-बोधित व्यक्ति की अपेक्षा से है । सूत्र-३४-३७ ६. शरीर अनित्य है, तब मुनि को आहार क्यों करना चाहिए ? यह प्रश्न सहज ही उत्पन्न होता है। इसके उत्तर में सूत्रकार ने बताया-कर्म-मुक्ति के लिए शरीर-धारण आवश्यक है और शरीर-धारण के लिए आहार आवश्यक है। अतः आहार का निषेध नहीं किया जा सकता। किन्तु आहार करने में अहिंसा की www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International 2010_03

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