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११२. वह त्रोटक (तोड़ने वाला) कहलाता है।
-ऐसा मैं कहता हूं।
११३. मृत्यु के समय होने वाला शरीर-पात संग्राम-शीर्ष (अग्रिम मोर्चा) कहलाता है। जो मुनि [उसमें पराजित नहीं होता,] वही पारगामी होता है।
वह परीषह से आहत होने पर जैसे खिन्न नहीं होता, वैसे बाह्य और आन्तरिक तप के द्वारा फलक की भांति शरीर और कषाय-दोनों ओर से कृश बना हुआ- खिन्न न बने । मृत्यु के निकट आने पर जब तक शरीर का वियोग न हो, तब तक काल की प्रतीक्षा करे-मृत्यु की आशंसा न करे।"
-ऐसा मैं कहता हूं।
४ जैसे काष्ठ को दोनों ओर से छीलकर उसका फलक बनाया जाता है, वैसे ही शरीर और कषाय से कृश बना हुआ मुनि फलगावयठी कहलाता है ।
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