Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 313
________________ २८६ आयारो वेयावच्चपकप्प-पदं ७६. जस्स णं भिक्खुस्स अयं पगप्पे-अहं च खलु पडिण्णत्तो अप डिण्णत्तेहि, गिलाणो अगिलाणेहिं, अभिकंख साहम्मिएहिं कीरमाणं वेयावडियं सातिज्जिस्सामि । अहं वा वि खलु अपडिण्णत्तो पडिण्णत्तस्स, अगिलाणो गिलाणस्स, अभिकंख साहम्मिअस्स कुज्जा वेयावडियं करणाए। ७७. आहटु पइण्णं आणक्खेस्सामि, आहडं च सातिज्जिस्सामि, आह१ पइण्णं आणक्खेस्सामि, आहडं च णो सातिज्जिस्सामि, आहटु पइण्णं णो आणक्खेस्सामि, आहडं च सातिज्जिस्सामि, आहट्ट पइण्णं णो आणक्खेस्सामि, आहडं च णो सातिज्जिस्सामि। ७८. लाघवियं आगममाणे । ७६. तवे से अभिसमण्णागए भवति। ५०. जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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