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विमोक्ष
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९२. भिक्षु यह जाने कि हेमन्त बीत गया है, ग्रीष्म ऋतु आ गई है, तब वह यथापरिजीर्ण वस्त्रों का विसर्जन करे । उनका विसर्जन कर
९३. वह अचेल (वस्त्र - रहित ) हो जाए ।
९४. वह लाघव का चिन्तन करता हुआ [ वस्त्र का विसर्जन ] करे ।
९५. वस्त्र - विसर्जन करने वाले मुनि के तप होता है ।
[ उपकरण - अवमोदर्य तथा काय- क्लेश ]
६६. भगवान् ने जैसे अल्प - वस्त्रत्व का प्रतिपादन किया है, उसे उसी रूप में जानकर सब प्रकार से, सर्वात्मना (सम्पूर्ण रूप से) समत्व का सेवन करे - किसी की अवज्ञा न करे ।
एकत्व भावना
९७. जिस भिक्षु को ऐसा अध्यवसाय ( बुद्धि या निश्चय) होता है- 'मैं अकेला हूं, मेरा कोई नहीं, मैं भी किसी का नही हूं; इस प्रकार वह भिक्षु अपनी आत्मा को एकाकी ही अनुभव करे ।
९८. वह लाघव का चिन्तन करता हुआ [ उपाधि - विसर्जन का चिन्तन करे ] ।
९९. उसे [ एकत्व भावना का ] तप होता है ।
१००. भगवान् ने जैसे एकत्व भावना का प्रतिपादन किया है, उसे उसी रूप में जानकर सब प्रकार से, सर्वात्मना (सम्पूर्ण रूप से) समत्व का सेवन करे-किसी की अवज्ञा न करे ।
अनास्वाद-लाघव
१०१. भिक्षु या भिक्षुणी अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य का सेवन करती हुई बाएं जबड़े से दाहिने जबड़े में न ले जाए, आस्वाद लेती हुई तथा दाएं जबड़े से जबड़े में न ले जाए, आस्वाद लेती हुई । वह अनास्वाद वृत्ति से आहार
करे ।
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