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विमोक्ष
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११४. अचेल मुनि के [ उपकरण - अवमौदर्य तथा काय-क्लेश ] तप होता है ।
११५. भगवान् ने जैसे अचेलत्व का प्रतिपादन किया है, उसे उसी रूप में जानकर सब प्रकार से, सर्वात्मना (सम्पूर्ण रूप से) समत्व का सेवन करे - किसी की अवज्ञा न करे ।
सेवा का कल्प
११६. जिस भिक्षु को ऐसा संकल्प होता है- 'मैं दूसरे भिक्षुओं को अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य लाकर दूंगा और उनके द्वारा लाया हुआ स्वीकार करूंगा ।'
११७. जिस भिक्षु को ऐसा संकल्प होता है- 'मैं दूसरे भिक्षुओं को अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य लाकर दूंगा, किन्तु उनके द्वारा लाया हुआ स्वीकार नहीं करूंगा
११८. जिस भिक्षु को ऐसा संकल्प होता है - 'मैं दूसरे भिक्षुओं को अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य लाकर नहीं दूंगा, किन्तु उनके द्वारा लाया हुआ स्वीकार करूंगा ।'
११९. जिस भिक्षु को ऐसा संकल्प होता है - 'मैं दूसरे भिक्षुओं को अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, लाकर न दूंगा और न उनके द्वारा लाया हुआ स्वीकार करूंगा ।'
१२०. 'मैं अपनी आवश्यकता से अधिक, अपनी कल्प मर्यादा के अनुसार ग्रहणीय तथा अपने लिए लाए हुए अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य से निर्जरा के उद्देश्य से उन साधर्मिकों की सेवा करूंगा - पारस्परिक उपकार की दृष्टि से ।'
१२१. 'मैं भी साधर्मिकों के द्वारा अपनी आवश्यकता से अधिक, अपनी कल्पमर्यादा के अनुसार ग्रहणीय तथा अपने लिए लाए हुए अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य से निर्जरा के उद्देश्य से उनके द्वारा की जाने वाली सेवा का अनुमोदन करूंगा।'
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