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________________ विमोक्ष २६१ ९२. भिक्षु यह जाने कि हेमन्त बीत गया है, ग्रीष्म ऋतु आ गई है, तब वह यथापरिजीर्ण वस्त्रों का विसर्जन करे । उनका विसर्जन कर ९३. वह अचेल (वस्त्र - रहित ) हो जाए । ९४. वह लाघव का चिन्तन करता हुआ [ वस्त्र का विसर्जन ] करे । ९५. वस्त्र - विसर्जन करने वाले मुनि के तप होता है । [ उपकरण - अवमोदर्य तथा काय- क्लेश ] ६६. भगवान् ने जैसे अल्प - वस्त्रत्व का प्रतिपादन किया है, उसे उसी रूप में जानकर सब प्रकार से, सर्वात्मना (सम्पूर्ण रूप से) समत्व का सेवन करे - किसी की अवज्ञा न करे । एकत्व भावना ९७. जिस भिक्षु को ऐसा अध्यवसाय ( बुद्धि या निश्चय) होता है- 'मैं अकेला हूं, मेरा कोई नहीं, मैं भी किसी का नही हूं; इस प्रकार वह भिक्षु अपनी आत्मा को एकाकी ही अनुभव करे । ९८. वह लाघव का चिन्तन करता हुआ [ उपाधि - विसर्जन का चिन्तन करे ] । ९९. उसे [ एकत्व भावना का ] तप होता है । १००. भगवान् ने जैसे एकत्व भावना का प्रतिपादन किया है, उसे उसी रूप में जानकर सब प्रकार से, सर्वात्मना (सम्पूर्ण रूप से) समत्व का सेवन करे-किसी की अवज्ञा न करे । अनास्वाद-लाघव १०१. भिक्षु या भिक्षुणी अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य का सेवन करती हुई बाएं जबड़े से दाहिने जबड़े में न ले जाए, आस्वाद लेती हुई तथा दाएं जबड़े से जबड़े में न ले जाए, आस्वाद लेती हुई । वह अनास्वाद वृत्ति से आहार करे । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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