Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 299
________________ २७२ आयारो २३. से भिक्खू परक्कमेज्ज वा, चिठेज्ज वा, णिसीएज्ज वा, तुयट्टेज्ज वा, सुसाणंसि वा, सुन्नागारंसि वा, गिरिगुहंसि वा, रुक्खमूलंसि वा, कुंभारायतणंसि वा, हुरत्था वा कहिंचि विहरमाणं तं भिक्खं उवसंकमित्तु गाहावती आयगयाए पेहाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटें अभिहडं आहटु चेएइ, आवसहं वा समुस्सिणाति, तं भिक्खं परिघासेउ।। २४. तं च भिक्खू जाणेज्जा-सहसम्मइयाए, परवागरणेणं, अण्णेसि वा अंतिए सोच्चा अयं खलु गाहावई मम अट्ठाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पाणाई भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटें अभिहडं आह? चेएइ, आवसहं वा समुस्सिणाति, तं च भिक्खू पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा अणासेवणाए त्ति बेमि । २५. भिक्खं च खलु पुट्ठा वा अपुट्ठा वा जे इमे आहच्च गंथा फुसंति “से हंता ! हणह, खणह, छिंदह, दहह, पचह, आलुपह, विलुपह, सहसाकारेह, विप्परामुसह"-ते फासे धीरो पुट्ठो अहियासए। २६. अदुवा आयार-गोयरमाइक्खे, तक्किया ण मणेलिसं । अणुपुव्वेण सम्म पडिलेहाए आयगुत्ते Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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