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विमोक्ष
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मुनि के आहार का प्रयोजन ३४. वीतराग और संयम का मर्मज्ञ मुनि जन्म और मृत्यु को जानकर [शरीर
की अनित्यता का अनुचिन्तन करे ।'
३५. शरीर आहार से उपचित होते हैं और वे कष्ट से भग्न हो जाते हैं।'
३६. तुम देखो-[आहार के बिना] कुछ मुनि सब इन्द्रियों की शक्ति से हीन हो
जाते हैं।
३७. वीतराग मुनि [ भूख-प्यास के उत्पन्न होने पर भी ]दया का पालन करता है।
३८. जो सन्निधान (सन्निधि, सन्निचय या संग्रह) के शस्त्र (अनिष्टकारक
शक्ति) को जानता है, [वह हिंसा आदि दोष-युक्त भोजन का सेवन नहीं करता]"
३९. वह भिक्ष कालज्ञ--भिक्षा-काल को जानने वाला,
बलज्ञ-भिक्षाटन की शक्ति को जानने वाला, मात्राज्ञ-ग्राह्य वस्तु की मात्रा को जानने वाला, क्षण-अवसर को जानने वाला, विनयज्ञ-भिक्षाचर्या की आचार संहिता को जानने वाला, समयज्ञ--सिद्धान्त को जानने वाला, परिग्रह पर ममत्त्व नहीं करने वाला, उचित समय पर अनुष्ठान करने वाला, और अप्रतिज्ञ (भोजन के प्रति संकल्प-रहित) हो।"
४०. वह [राग और द्वेष]-दोनों बन्धनों को छिन्न कर नियमित जीवन जीता है।
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