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________________ विमोक्ष २७७ मुनि के आहार का प्रयोजन ३४. वीतराग और संयम का मर्मज्ञ मुनि जन्म और मृत्यु को जानकर [शरीर की अनित्यता का अनुचिन्तन करे ।' ३५. शरीर आहार से उपचित होते हैं और वे कष्ट से भग्न हो जाते हैं।' ३६. तुम देखो-[आहार के बिना] कुछ मुनि सब इन्द्रियों की शक्ति से हीन हो जाते हैं। ३७. वीतराग मुनि [ भूख-प्यास के उत्पन्न होने पर भी ]दया का पालन करता है। ३८. जो सन्निधान (सन्निधि, सन्निचय या संग्रह) के शस्त्र (अनिष्टकारक शक्ति) को जानता है, [वह हिंसा आदि दोष-युक्त भोजन का सेवन नहीं करता]" ३९. वह भिक्ष कालज्ञ--भिक्षा-काल को जानने वाला, बलज्ञ-भिक्षाटन की शक्ति को जानने वाला, मात्राज्ञ-ग्राह्य वस्तु की मात्रा को जानने वाला, क्षण-अवसर को जानने वाला, विनयज्ञ-भिक्षाचर्या की आचार संहिता को जानने वाला, समयज्ञ--सिद्धान्त को जानने वाला, परिग्रह पर ममत्त्व नहीं करने वाला, उचित समय पर अनुष्ठान करने वाला, और अप्रतिज्ञ (भोजन के प्रति संकल्प-रहित) हो।" ४०. वह [राग और द्वेष]-दोनों बन्धनों को छिन्न कर नियमित जीवन जीता है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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