Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 268
________________ २४१ तृतीय उद्देशक उपकरण-परित्याग धुत ५६. सदा सु-आख्यात धर्मी वाला तथा धुत-आचार सेवी मुनि आदान (वस्त्र) का परित्याग कर देता है। ६०. जो मुनि निर्वस्त्र रहता है, उसके मन में यह [विकल्प] उत्पन्न नहीं होता, 'मेरा वस्त्र जीर्ण हो गया है ; इसलिए मैं वस्त्र की याचना करूंगा। फटे वस्त्र को सांधने के लिए धागे की याचना करूंगा, सूई की याचना करूंगा, उसे सांधंगा, उसे सीऊंगा । छोटा है, इसलिए उसे जोड़ कर बड़ा बनाऊंगा, बड़ा है; इसलिए उसे काट कर छोटा बनाऊंगा, उसे पहनूंगा और ओढ़गा। ६१. अथवा अचेल-अवस्था में रहते हुए उसे बार-बार तृण, सर्दी, गर्मी और दंशमशक के स्पर्श पीडित करते हैं। ६२. अचेल मुनि एकजातीय, अनेकजातीय-नाना प्रकार के स्पर्शों को सहन करता है। ६३. [अचेल मुनि ] लाघव को प्राप्त होता है । ६४. अचेल मुनि के [उपकरण-अवमौदर्य तथा काय-क्लेश] तप होता है। ६५. भगवान् ने जैसे अचेलत्व का प्रतिपादन किया है, उसे उसी रूप में जानकर, ___ सब प्रकार से, सर्वात्मना समत्व का सेवन करे-किसी की अवज्ञा न करे। । स्वाख्यात का शाब्दिक अर्थ है-सम्यक् प्रकार से कहा गया। भगवान ने समता-धर्म का प्रतिपादन किया। वह नैर्यानिक-निर्वाण तक पहुंचाने वाला, सत्य-अनेकान्त-दृण्टिकोण से युक्त, संशुद्ध-राग, द्वेष और मोह रहित तथा प्रत्युत्पन्न-वर्तमान क्षण में आश्रव का निरोध और बंध की निर्जरा करने वाला है। इसलिए वह स्वाख्यात है। + चर्णिकार ने 'आदान' का अर्थ 'ज्ञान, दर्शन और चारित्र' तथा वृत्तिकार ने 'कर्म या वस्त्र आदि' किया है । प्रकरणानुसार 'वस्त्र' ही प्रतीत होता। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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