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टिप्पण
सूत्र-१ १. मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं : सुप्त, सुप्त-जागृत और जागृत । ये अवस्थाएं शरीर की भांति चैतन्य में भी घटित होती हैं। उनका आधार चैतन्य-विकास का तारतम्य है :
चैतन्य-विकास संयम का शून्य बिन्दु संयम का मध्य बिन्दु संयम का चरम बिन्दु सुप्ति सुप्ति-जागृति
जागति अध्यात्म की भाषा में असंयमी अज्ञानी और संयमी ज्ञानी कहलाता है।
सूत्र-४ २. चूणि के अनुसार इस सूत्र का अनुवाद इस प्रकार होता है- जो पुरुष इन-शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्शों को भली-भांति जान लेता है-उनमें राग-द्वेष नहीं करता, वह आत्मवित्, ज्ञानवित्, वेदवित्, धर्मवित् और ब्रह्मवित् होता है।
शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श की आसक्ति आत्मा की उपलब्धि में बाधक बनती है । इनमें आसक्त मनुष्य अनात्मवान् और अनासक्त आत्मवान् कहलाता है। जिसे आत्मा उपलब्ध होता है, उसे ज्ञान, शास्त्र, धर्म और आचार-सब कुछ उपलब्ध हो जाता है। जो आत्मा को जान लेता है, वह ज्ञान, शास्त्र, धर्म और आचार-सब कुछ जान लेता है।
सूत्र-७ ३. कष्ट हर व्यक्ति के जीवन में आता है। अहिंसा और अपरिग्रह का जीवन जीने वाले निर्ग्रन्थ के जीवन में प्राकृतिक कष्ट अधिक आते हैं। __ अज्ञानी मनुष्य कष्ट का वेदन करता है । ज्ञानी मनुष्य कष्ट को जानता
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