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आयारो
सम्यग् आचरण होने की सूचना देता है और सम्यग् आचार सम्यक् ज्ञान होने की सूचना देता है । एक को देखकर दसरे को सहज ही देखा जा सकता है ।
'सम्म' शब्द का संस्कृत रूप साम्य भी किया जा सकता है। यहां साम्य का अर्थ प्रासंगिक भी है। उसके सन्दर्भ में प्रस्तुत सूत्र का अनुवाद इस प्रकार होगा - तुम
'देखो - जो साम्य है, वह साधुत्व है;
जो साधुत्व है, वह साम्य है ।
सूत्र - ६२
२१. शिष्य ने पूछा, "भंते! अव्यक्त कौन होता है ?"
आचार्य ने कहा, "कुछ व्यक्ति ज्ञान और अवस्था — दोनों से अव्यक्त होते हैं।
"}
"कुछ व्यक्ति ज्ञान से अव्यक्त और अवस्था से व्यक्त होते हैं ।"
अव्यक्त होते हैं ।"
"कुछ व्यक्ति ज्ञान से व्यक्त और अवस्था से "कुछ व्यक्ति ज्ञान और अवस्था -- दोनों से व्यक्त होते हैं ।" सोलह वर्ष की अवस्था से ऊपर का व्यक्ति अवस्था से व्यक्त होता है और नवें पूर्व की तीसरी आचार-वस्तु तक को जानने वाला ज्ञान से व्यक्त होता है । जो मुनि ज्ञान और अवस्था - दोनों से व्यक्त होता है, वह प्रयोजनवश अकेला विहार कर सकता है ।
सूत्र - ६३
२१. कोई अव्यक्त साधु जा रहा था। एक मनुष्य ने दूसरे से पूछा -यह कौन है ? सामने वाले व्यक्ति ने उत्तर दिया – कोई शूद्र होगा। यह सुनते ही वह कुपित हो
गया।
अव्यक्त मनुष्य किसी के शरीर से छू जाने पर भी कुपित हो जाता है । कोई अव्यक्त साधु जा रहा था। एक मजदूर सिर पर भार लिए सामने से आया और उससे टकरा गया। साधु क्रुद्ध होकर बोला- क्या अन्धे हो, देखते नहीं ? मजदूर ने भी उसी भाषा में उत्तर दिया और दोनों में तू-तू, मैं-मैं हो गई ।
एक अव्यक्त साधु था । उसने कोई प्रमाद किया। गुरु ने उसे उलाहना दिया । वह बोला - " मैंने ऐसा क्या किया ? इतने साधुओं के बीच में मुझे क्यों तिरस्कृत किया ? क्या दूसरे साधु ऐसा प्रमाद नहीं करते ?"
इस प्रकार वह बोलता रहा, क्रोध के आवेश में अपने प्रमाद को नहीं देख
सका ।
इस प्रकार के व्यक्ति एकाकी विहार कर साधना का विकास नहीं कर सकते ।
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