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आयारो
सूत्र-९३ ३६. ज्ञेय विषय तीन प्रकार के होते हैं
१. सुखाधिगम--जो सरलता से जाना जा सके । २. दुरधिगम---जो कठिनाई से जाना जा सके । ३. अनधिगम-जो नहीं जाना जा सके। दुरधिगम अर्थ के प्रति विचिकित्सा या शंका उत्पन्न होती है। समाधि का अर्थ मन की एकाग्रता, चित्त का स्वास्थ्य या सम्यग्-दर्शन है।
सूत्र-६४
३७. खिन्नता की स्थिति में जो मनःस्थिति निर्मित होती है, उसका वर्णन प्रज्ञा-परीषह और अज्ञान-परीषह में मिलता है
से नणं मए पुव्वं कम्माणाणफला कडा । जेणाहं नाभिजाणामि पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥ अह पच्छा उइज्जन्ति कम्माणाणफला कडा । एवमस्सासि अप्पाणं नच्चा कम्म-विवागयं ॥ निरट्ठगम्मि विरओ मेहुणाओ सुसंवुडो । जो सक्खं नाभिजाणामि धम्म कल्लाणपावगं ॥ तवोवहाणमादाय पडिमं पडिवज्जओ । एवं पि विहरओ मे छउमं न नियट्टई ॥
__ (उत्तराध्ययन सूत्र, अ० २, श्लोक ४०-४३) 'निश्चय ही मैंने पूर्वकाल में अज्ञानरूप-फल देने वाले कर्म किए हैं। उन्हीं के कारण मैं किसी के कुछ पूछे जाने पर भी कुछ नहीं जानता-उत्तर देना नहीं जानता।
_ 'पहले किए हुए अज्ञानरूप-फल देने वाले कर्म पकने के पश्चात् उदय में आते हैं-इस प्रकार कर्म के विपाक को जानकर मुनि आत्मा को आश्वासन दे। ___ 'मैं मैथुन से निवृत्त हुआ, इन्द्रिय और मन का मैंने संवरण किया—यह सब निरर्थक है । क्योंकि धर्म कल्याणकारी है या पापकारी-यह मैं साक्षात् नहीं जानता।
_ 'तपस्या और उपधान को स्वीकार करता हूं, प्रतिमा का पालन करता हूंइस प्रकार विशेष चर्या से विहरण करने पर भी मेरा छद्म (ज्ञानावरणादि कर्म) निवर्तित नहीं हो रहा है।' - ऐसा चिन्तन न करे ।
यह प्रथम दु:ख-शय्या से तुलनीय है
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