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३९. वह संयम-पूर्वक चर्या करने वाला, विरत, गृहत्यागी, सब प्रकार से मुण्ड
और अनियत वास वाला होता है ।
४०. जो मुनि निर्वस्त्र रहता है, वह अवमौदर्य तप का अनुशीलन करता है ।"
४१. कोई मनुष्य उसे गाली देता है, पीटता है या अंग-भंग करता है।
४२. [कोई मनुष्य ] कर्म की [स्मृति दिलाकर] गाली देता है अथवा कोई
[असभ्य शब्दों का प्रयोग करके ] गाली देता है ।१२
४३. कोई तथ्य-हीन [चोर आदि] शब्दों द्वारा [सम्बोधित करता है और हाथ
पैर आदि काटने का मिथ्या आरोप लगाता है-इन [सब] को सम्यक् चिन्तन के द्वारा [सहन करे] ।१३
४४. एकजातीय या भिन्नजातीय [परीषहों को उत्पन्न हुआ] जानकर मुनि
उन्हें सहन करता हुआ परिव्रजन करे ।
४५. मूनि लज्जाकारी (जैसे-अचेल परीषह) और अलज्जाकारी (जैसे-शीत
परीषह) [दोनों प्रकार के परीषहों को सहन करता हुआ परिव्रजन करे । ४६. सम्यग-दर्शन-सम्पन्न मुनि सब प्रकार की चैतसिक चंचलता को छोड़कर
स्पर्शों को समभाव से सहन करे।
४७. धर्म-क्षेत्र में उन्हें नग्न कहा गया है, जो दीक्षित होकर पुनः गृहवास में नहीं
आते हैं।१५ + स्थानांग सूत्र में दस प्रकार के मुण्ड बतलाये गये हैं
१. क्रोध-मुण्ड-क्रोध का अपनयन करने वाला। २. मान-मुण्ड–मान का अपनयन करने वाला। ३. माया-मण्ड-माया का अपनयन करने वाला। ४. लोभ-मुण्ड-लोभ का अपनयन करने वाला। ५. शिर-मुण्ड-शिर के केशों का लुंचन करने वाला। ६. श्रोनेन्द्रिय-मुण्ड-~-कर्णेन्द्रिय के विकार का अपनयन करने वाला। 19. चक्षुरिन्द्रिय-मुण्ड-चक्षुरिन्द्रिय के विकार का अपनयन करने वाला। ८. घ्राणेन्द्रिय-मुण्ड-घ्राणेन्द्रिय के विकार का अपनयन करने वाला । ६. रसनेन्द्रिय-मुण्ड-रसनेन्द्रिय के विकार का अपनयन करने वाला । १०. स्पर्शनेन्द्रिय-मण्ड-स्पर्शनेन्द्रिय के विकार का अपनयन करने वाला।
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