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________________ २३७ ३९. वह संयम-पूर्वक चर्या करने वाला, विरत, गृहत्यागी, सब प्रकार से मुण्ड और अनियत वास वाला होता है । ४०. जो मुनि निर्वस्त्र रहता है, वह अवमौदर्य तप का अनुशीलन करता है ।" ४१. कोई मनुष्य उसे गाली देता है, पीटता है या अंग-भंग करता है। ४२. [कोई मनुष्य ] कर्म की [स्मृति दिलाकर] गाली देता है अथवा कोई [असभ्य शब्दों का प्रयोग करके ] गाली देता है ।१२ ४३. कोई तथ्य-हीन [चोर आदि] शब्दों द्वारा [सम्बोधित करता है और हाथ पैर आदि काटने का मिथ्या आरोप लगाता है-इन [सब] को सम्यक् चिन्तन के द्वारा [सहन करे] ।१३ ४४. एकजातीय या भिन्नजातीय [परीषहों को उत्पन्न हुआ] जानकर मुनि उन्हें सहन करता हुआ परिव्रजन करे । ४५. मूनि लज्जाकारी (जैसे-अचेल परीषह) और अलज्जाकारी (जैसे-शीत परीषह) [दोनों प्रकार के परीषहों को सहन करता हुआ परिव्रजन करे । ४६. सम्यग-दर्शन-सम्पन्न मुनि सब प्रकार की चैतसिक चंचलता को छोड़कर स्पर्शों को समभाव से सहन करे। ४७. धर्म-क्षेत्र में उन्हें नग्न कहा गया है, जो दीक्षित होकर पुनः गृहवास में नहीं आते हैं।१५ + स्थानांग सूत्र में दस प्रकार के मुण्ड बतलाये गये हैं १. क्रोध-मुण्ड-क्रोध का अपनयन करने वाला। २. मान-मुण्ड–मान का अपनयन करने वाला। ३. माया-मण्ड-माया का अपनयन करने वाला। ४. लोभ-मुण्ड-लोभ का अपनयन करने वाला। ५. शिर-मुण्ड-शिर के केशों का लुंचन करने वाला। ६. श्रोनेन्द्रिय-मुण्ड-~-कर्णेन्द्रिय के विकार का अपनयन करने वाला। 19. चक्षुरिन्द्रिय-मुण्ड-चक्षुरिन्द्रिय के विकार का अपनयन करने वाला। ८. घ्राणेन्द्रिय-मुण्ड-घ्राणेन्द्रिय के विकार का अपनयन करने वाला । ६. रसनेन्द्रिय-मुण्ड-रसनेन्द्रिय के विकार का अपनयन करने वाला । १०. स्पर्शनेन्द्रिय-मण्ड-स्पर्शनेन्द्रिय के विकार का अपनयन करने वाला। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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