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लोकसार
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परमात्मा
१२. सब स्वर लोट आते हैं-परमात्मा शब्द के द्वारा प्रतिपाद्य नहीं है।
१२४. वहां कोई तर्क नहीं है-परमात्मा तर्क-गम्य नहीं है।
१२५. वह मति के द्वारा ग्राह्य नहीं है।
१२६. वह अकेला, शरीर-रहित और ज्ञाता है ।
१२७. वह[परमात्मा] न दीर्घ है, न ह्रस्व है, न वृत्त है, न त्रिकोण है, न चतुष्कोण
है और न परिमण्डल है।
१२८. वह न कृष्ण है, न नील है, न लाल है, न पीत है और न शुक्ल है ।
१२९. वह न सुगन्ध है और न दुर्गन्ध है।
१३०. वह न तिक्त है, न कटु है, न कषाय है, न अम्ल है और न मधुर है।
१३१. वह न कर्कश है, न मृदु है , न गुरु है, न लघु है, न शीत है, न उष्ण है, न
स्निग्ध है और न रूक्ष है।
१३२. वह शरीरवान् नहीं है।
१३३. वह जन्मधर्मा नहीं है।
१३४. वह लेप-युक्त नहीं है।
१३५. वह न स्त्री है, न पुरुष है और न नपुंसक ह।
१३६. वह परिज्ञा है, संज्ञा है-सर्वतः चैतन्यमय है।
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