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लोकसार
२०९
१३७. [उसका बोध करने के लिए] कोई उपमा नहीं है।
१३८. वह अमूर्त अस्तित्व है।
१२९. वह पदातीत है । [उसका बोध करने के लिए] कोई पद नहीं है ।
१४०. वह न शब्द है, न रूप है, न गन्ध है, न रस और न स्पर्श है। इतना ही।
-ऐसा मैं कहता हूं।
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