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सम्यक्त्व
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नहीं होती । अतीत का संस्कार नहीं होता, तो भविष्य की कल्पना नहीं होती तथा संस्कार और कल्पना के बिना वर्तमान का चिन्तन नहीं होता।
सूत्र-५० १३. जिसकी इन्द्रियों का प्रवाह नश्वर विषयों की ओर होता है, वह अमृत को प्राप्त नहीं हो सकता। उसकी प्राप्ति के लिए इन्द्रिय-प्रवाह को मोड़ना आवश्यक होता है। जिसकी सारी इन्द्रियां अमृत के दर्शन में लग जाती हैं, वह स्वयं अमृतमय बन जाता है । निष्कर्म के पांच अर्थ किये जा सकते हैं-शाश्वत, अमृत, मोक्ष, संवर और आत्मा। कर्म को देखने वाला कर्म को प्राप्त होता है और निष्कर्म को देखने वाला निष्कर्म को प्राप्त होता है। निष्कर्म-दर्शन योग-साधना का बहुत बड़ा सूत्र है।
निष्कर्म का दर्शन चित्त की सारी वृत्तियों को एकाग्र कर करना चाहिए। उस समय केवल आत्मा या आत्मोपलब्धि के साधन को ही देखना चाहिए । अन्य किसी वस्तु पर मन नहीं जाना चाहिए।
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