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सम्यक्त्व
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१४. आर्त्त (अभावग्रस्त) मनुष्य भी [धर्म को स्वीकार नहीं करते और प्रमत्त
(विलासी) मनुष्य भी।
१५. यह वास्तविक सत्य है-ऐसा मैं कहता हूं।
१६. मौत का मुंह नाना मार्गों से दिख जाता है। फिर भी कुछ लोग इच्छा द्वारा
संचालित और माया के निकेतन बने रहते हैं । वे काल की पकड़ में होने पर भी [भविष्य में धर्म करने की बात सोचकर] अर्थ-संग्रह में जुटे रहते हैं। इस प्रकार के लोग नाना प्रकार की योनियों में जन्म धारण करते हैं।
१७. कुछ लोगों का विभिन्न मतों से परिचय होता है । [वे उनके परिचय से आस्रव
का सेवन कर] अधोलोक में होने वाले स्पर्शों का संवेदन करते हैं।
१८. [जिस पुरुष के अध्यवसाय] प्रगाढ़ क्रूर-कर्म में प्रवृत्त होते हैं, वह प्रगाढ़
वेदना वाले स्थान में उत्पन्न होता है। [जिसके अध्यवसाय] प्रगाढ़ करकर्म में प्रवृत्त नहीं होते, वह प्रगाढ़ वेदना वाले स्थान में उत्पन्न नहीं होता।
१६. क्या यह बात अन्य दार्शनिक कहते हैं या ज्ञानी भी कहते हैं ?
यह ज्ञानी कहते हैं या अन्य दार्शनिक भी कहते हैं ?
X इस सूत्र का वैकल्पिक अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है
जो धर्म को स्वीकार नहीं करते, वे आर्त्त होते हैं या प्रमत्त । + अठारहवें सूत्र में हिंसा का फल प्रतिपादित है। वह सर्वसम्मत है या नहीं, इसकी चचा
प्रस्तुत सूत्र में की गई है । 'अथवा' शब्द के प्रयोग द्वारा यह जिज्ञासा ध्वनित होती है कि उक्त मत केवलज्ञानी पुरुष का ही है अथवा दूसरों का भी।
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रमुखतया दूसरे दार्शनिक करते हैं या ज्ञानी करते हैंइस जिज्ञासा के दो विकल्प किए गए हैं।
प्रथम जिज्ञासा हैइस सिद्धान्त के प्रतिपादन में क्या ज्ञानी अन्य दार्शनिकों का अनुसरण करते हैं ? दूसरी जिज्ञासा हैक्या दूसरे दार्शनिक ज्ञानी का अनुसरण करते हैं ? इसका उत्तर अगले सूत्रों में है।
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