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टिप्पण
सूत्र - १
१. गुण का अर्थ है - इन्द्रिय विषय । वह दो प्रकार का होता है - इष्ट और अनिष्ट | इष्ट गुण के प्रति राग और अनिष्ट गुण के प्रति द्वेष होता है। इस प्रकार गुणसे कषाय बढ़ता है और कषाय से संसार बढ़ता है— जन्म-मरण की परम्परा बढ़ती है । इस कारण कार्य की परम्परा में गुण संसार का मूल आधार बन जाता है । इसीलिए गुण और मूलस्थान (संसार) में एकता आरोपित की गई है।
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सूत्र - २
२. विषयार्थी मनुष्य में दो बातें बढ़ती हैं— ममत्व और प्रमाद । इनसे अभिभूत होकर ही वह अर्थ-लोलुप बनता है ।
सूत्र - ५
३. सामान्यतः मनुष्य की आयु सौ वर्ष की होती है । वह दस दशाओं में विभक्त है । चौथी दशा ( ४० वर्ष ) तक शरीर की आभा और बल पूर्ण विकसित रहते हैं । उसके बाद उनकी हानि शुरू हो जाती है । पचास वर्ष की अवस्था में चक्षु तथा अन्य इन्द्रियों की शक्ति भी हीन होने लग जाती है ।
सूत्र - ६
४. मूढ़ता के दो अर्थ होते हैं - इन्द्रिय-हानि और आसक्ति । इन्द्रिय-हानि, जैसे - सुनाई न देना या ऊंचा सुनना ।
आसक्ति --- जैसे-जैसे इन्द्रियों की शक्ति हीन होती है, वैसे-वैसे उनके विषयों के प्रति आसक्ति बढ़ती जाती है। इस प्रकार वृद्ध मनुष्य मूढ़ स्वभाव वाला बन जाता है ।
सूत्र -१०
५. सामान्यतया मनुष्य हिंसा और परिग्रह में विहार करता है । इनके बिना
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