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आवश्यक नियुक्तिः
साधूनां निरुक्तितो नमस्कारमाहणिव्वाणसाधए जोगे सदा जुंजंति साधवो । समासव्वेसु भूदेसु तह्या ते सव्वसाधवो ।। ११ । । * निर्वाणसाधकान् योगान् सदा युंजंति साधवः । समाः सर्वेषु भूतेषु तस्मात् ते सर्वसाधवः ॥ ११॥
यस्मान्निर्वाणसाधकान् योगान् मोक्षप्रापकान् मूलगुणादितपोऽनुष्ठानानि सदा सर्वकालं रात्रिंदिवं युंजन्ति तैरात्मानं योजयन्ति साधवः साधुचरितानि । यस्माच्च समाः समत्वमापन्नाः सर्वभूतेषु सकलजीवेषु तस्मात्कारणात्ते सर्वसाधव इत्युच्यन्ते । तेषां सर्वसाधूनां नमस्कारं भावेन यः करोति प्रयत्नमतिः स सर्वदुःखमोक्षं करोत्यचिरेण कालेनेति ॥११॥
पंचनमस्कारमुपसंहरन्नाह—
एवं गुणत्
पंचगुरूणं
विसुद्धकरणेहिं । जो कुणदि णमोक्कारं सो पावदि णिव्वुदिं सिग्घं ।। १२ । । *
गाथार्थ–निर्वाण के साधक ऐसे साधु योगों में सदा अपने को लगाते हैं, सभी जीवों में समताभावी हैं, इसीलिए वे सर्व साधु कहलाते हैं ॥ ११ ॥
आचारवृत्ति — जिस कारण से मोक्ष को प्राप्त कराने वाले ऐसे मूलगुण आदि तपों के अनुष्ठान में हमेशा रात-दिन वे अपनी आत्मा को लगाते हैं, जिनका आचरण साधु-सदाचार युक्त है और जिस हेतु से वे सम्पूर्ण जीवों में समता भाव को धारण करने वाले हैं, इसी हेतु से वे सर्व साधु इस नाम से कहे जाते हैं । जो प्रयत्नशील होकर उन सभी साधुओं को नमस्कार करता है, वह शीघ्र ही सर्व दुःखों से मुक्त हो जाता है ॥११॥
आगे पंचनमस्कार का उपसंहार करते हुए कहते हैं
* फलटन से प्रकाशित प्रति में यह गाथा अधिक है
उवज्झायणमोक्कारं भावेण य जो करेदि पयदमदी । सो सव्वदुक्खमोक्खं पावदि अचिरेण कालेण ॥ अर्थात् जो स्थिरचित्त भव्य भावों से उपाध्याय परमेष्ठी को नमस्कार करता है, वह शीघ्र
ही सर्वदुःखों से छूटकर मुक्ति को प्राप्त कर लेता है ।
* फलटन से प्रकाशित प्रति में यह गाथा अधिक है
साहूण णमोक्कारं भावेण य जो करेदि पयदमदी । सो सव्वदुक्खमोक्खं पाइव अचिरेण कालेन ॥
अर्थ – जो स्थिरचित्त हुआ भव्यजीव भावपूर्वक साधुओं को नमस्कार करता है वह तत्काल ही सर्वदुःखों से छूटकर मुक्ति प्राप्त कर लेता है । 'साहूण' की जगह 'अरहंत' शब्द देकर ज्यों की त्यों यह गाथा क्र० ५ पर अंकित है ।
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