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आवश्यकनियुक्तिः
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सामायिकनियुक्तिमुपसंहर्तुं चतुर्विंशतिस्तवं सूचयितुं प्राहसामाइयणिज्जुत्ती एसा कहिया मए समासेण । चउवीसयणिज्जुत्ती एतो उड्डे पवक्खामि ।।३६।।
सामायिकनियुक्तिः एषा कथिता मया समासेन ।
चतुर्विंशतिनियुक्तिं इति ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामि ॥३६॥ सामायिकनियुक्तिरेषा कथिता समासेन । इत ऊर्ध्वं चतुर्विंशतिस्तवनियुक्तिं प्रवक्ष्यामीति ॥३६॥
'तदवबोधनार्थं 'निक्षेपमाहणामट्ठवणा दव्वे खेत्ते काले य होदि भावे य । एसो थवह्यि णेओ णिक्खेवो छव्विहो होई ।।३७।।
नाम स्थापना द्रव्यं क्षेत्रं कालश्च भवति भावश्च ।
एष स्तवे ज्ञेयो निक्षेपः षड्विधो भवति ॥३७।। नामस्तवः स्थापनास्तवो द्रव्यस्तवः क्षेत्रस्तवः कालस्तवो भावस्तव एव स्तवे निक्षेपः षडविधो भवति ज्ञातव्यः । चतुर्विंशतितीर्थंकराणां यथार्थानुगतैरष्टोत्तरसहस्रसंख्यैर्नामभिः स्तवनं चतुर्विंशतिनामस्तवः, चतुर्विंशतितीर्थंकराणामपरिमितानां कृत्रिमाकृत्रिमस्थापनानां स्तवनं चतुर्विंशतिस्थापनास्तवः । तीर्थंकरशरीराणां परमौदारिकस्वरूपाणां वर्णभेदेन स्तवनं द्रव्यस्तवः ।
.. गाथार्थ—मैंने संक्षेप में यह सामायिक नियुक्ति कही है, अब इससे आगे चतुर्विंशति-स्तव को कहूँगा ॥३६॥ ... द्वितीय चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक को निक्षेप-विधि से कहते हैं
गाथार्थ-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से, इस तरह इस चतुर्विंशतिस्तव में छह प्रकार का निक्षेप जानना चाहिए ॥३७॥
आचारवृत्ति-चतुर्विंशतिस्तव में नामस्तव, स्थापनास्तव, द्रव्यस्तव, क्षेत्रस्तव, कालस्तव और भावस्तव-यह छह प्रकार का निक्षेप जानना चाहिए । ____चौबीस तीर्थंकरों के वास्तविक अर्थ का अनुसरण करने वाले एक हजार आठ नामों से स्तवन करना चतुर्विंशति नामस्तव है । चौबीस तीर्थंकरों की कृत्रिम अ-कृत्रिम प्रतिमाएँ स्थापना प्रतिमाएँ हैं जो कि अपरिमित हैं, अर्थात् कृत्रिम प्रतिमाएँ अगणित हैं, अकृत्रिम प्रतिमाएँ, तो असंख्य हैं उनका स्तवन करना चतुर्विंशति स्थापना-स्तव है । तीर्थंकरों के शरीर, जो कि परमौदारिक हैं, के वर्ण-भेदों का वर्णन करते हुए स्तवन करना द्रव्यस्तव है ।
१.
क तदनुवो० ।
२.
क ०पानाह ।
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