Book Title: Aavashyak Niryukti
Author(s): Fulchand Jain, Anekant Jain
Publisher: Jin Foundation

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Page 271
________________ २०६ जैन श्रमण के षड्-आवश्यक : एक तुलनात्मक अध्ययन गाणं, धम्मवर-चाउरंग-चक्कवट्टीणं देवाहिदेवाणं, णाणाणं, दसणाणं, चरित्ताणं सदा करेमि, किरियम्मं । करेमि भन्ते ! सामाइयं सव्वसावज्जजोगं पच्चक्खामि जावज्जीवं तिविहेण मणसा वचसा कायेण ण करेमि ण कारेमि कीरंतंपि ण समणुमणामि । तस्स भंते ! अइचारं पच्चक्खामि, जिंदामि गरहामि अप्पाणं, जाव अरहंताणं भयवंताणं पज्जुवासं करेमि ताव कालं पावकम्मं दुचरियं वोस्सरामि । __(तीन आवर्त, एक शिरोनति करके जिनमुद्रा या योगमुद्रा से सत्ताईस उच्छवास में नवबार (णमोकार)-मन्त्र जपकर पुन: पंचांग नमस्कार करे । अनन्तर खड़े होकर तीन आवर्त एक शिरोनति करके मुक्ताशुक्ति मुद्रा से हाथ जोड़कर निम्नलिखित 'थोस्सामि-स्तव' पढ़ना चाहिए ।) ८. थोस्सामि-स्तव थोस्सामि हं जिणवरे, तित्थयरे केवली अणंतजिणे। णरपवरलोयमहिए, विहुयरयमले महप्पण्णे ।।१।। लोयस्सुज्जोययरे, धम्मं तित्थंकरे जिणे वंदे । अरहंते कित्तिस्से, चउवीसं चेवि केवलिणो ।।२।। उसहमजियं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमइं च । पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ।।३।। सविहिं च पुप्फयंतं, सीयल सेयं च वासपुज्जं च । विमलमणंतं भयवं, धम्मं संतिं च वंदामि ।।४।। कुंथु च जिणवरिंद, अरं च मल्लि च सुव्वयं च णमि । वंदामि रिट्ठणेमि, तह पासं वड्डमाणं च ।।५।। एवं मए अभित्थुआ विहुयरयमला पहीणजरमरणा। चउवीसं पि जिणवरा तित्थयरा मे पसीयंतु ।।६।। कित्तिय वंदिय महिया, एदे लोगोत्तमा जिणा सिद्धा । आरोग्ग-णाण-लाह, दिंतु समाहिं च मे बोहिं ।।७।। चंदेहिं णिम्मलयरा, आइच्चेहिं अहियपयासंता । सायरमिव गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ।।८।। (पुन: तीन आवर्त एक शिरोनति करके वन्दना मुद्रा से हाथ जोड़कर "जयति भगवान् हेमांभोज" इत्यादि चैत्यभक्ति पढ़े ।) आवर्त और शिरोनति-इस तरह इस कृतिकर्म में प्रतिज्ञा के अनन्तर तथा कायोत्सर्ग के अनन्तर ऐसे दो बार पंचांग नमस्कार करने से दो अवनति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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