Book Title: Aavashyak Niryukti
Author(s): Fulchand Jain, Anekant Jain
Publisher: Jin Foundation

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Page 272
________________ आवश्यक नियुक्तिः प्रणाम हो जाते हैं । सामायिक- स्तव के आदि - अन्त में तथा 'थोस्सामिस्तव' के आदि-अन्त में तीन-तीन आवर्त और एक-एक शिरोनति करने से बारह आवर्त और चार शिरोनति होती है । लघु भक्तियों के पाठ में कृतिकर्म में लघु सामायिकस्तव और थोस्सामिस्तव भी होता है । यथा— अथ पौर्वाह्निकस्वाध्याय-प्रतिष्ठापन-क्रियायां.. कम्यहं । . श्रुतभक्तिकायोत्सर्गं (पूर्ववत् पंचांग नमस्कार करके, तीन आवर्त और एक शिरोनति करे । पुनः सामायिक दण्डक पढ़े ।) ९. सामायिकस्तव - णमो अरहंताणं णमोसिद्धाणं णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं ।। २०७ चत्तारि मंगलं - अरहंत मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं । चत्तारि लोगुत्तमा-अरहंत लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहूलोगुतमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो । चत्तारि सरणं पव्वज्जामि – अरहंत - सरणं पव्वज्जामि, सिद्धे सरणं पव्वज्जामि, साहू सरणं पव्वज्जामि, केवलिपण्णत्तं धम्मं सरणं पव्वज्जामि । जाव अरहंताणं भयवंताणं पज्जुवासं करोमि, ताव कालं पावकम्मं दुच्चरियं वोस्सरामि । (तीन आवर्त एक शिरोनति करके २७ उच्छ्वास में ९ बार णमोकार मन्त्र जपकर पुन: पंचाङ्ग नमस्कार करे । अनन्तर तीन आवर्त एक शिरोनति करके 'थोस्सामि' पढ़े ।) पुनः तीन आवर्त एक शिरोनति करके 'श्रुतमपि जिनवरविहितं' इत्यादि लघु श्रुतभक्ति पढ़े । ऐसे ही सर्वत्र समझना चाहिए । Jain Education International यदि पुनः पुनः खड़े होकर क्रिया करने की शक्ति नहीं है तो बैठकर भी ये क्रियाएँ की जा सकती हैं । यह षडावश्यक की संक्षिप्त प्रयोग विधि है, जो परवर्ती आचार-विषयकशास्त्रों में वर्णित है। विशेष विस्तृत विधि इन्हीं आचारशास्त्रों से ज्ञात की जा सकती है । *** For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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