Book Title: Aavashyak Niryukti
Author(s): Fulchand Jain, Anekant Jain
Publisher: Jin Foundation

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Page 251
________________ १८६ जैन श्रमण के षड्-आवश्यक : एक तुलनात्मक अध्ययन १. अयोग्य नाम का उच्चारण 'मैं नहीं करूँगा' इस प्रकार का संकल्प नाम प्रत्याख्यान है। २. आप्ताभास रूप सरागी देवों की प्रतिमाओं की पूजा तथा त्रस, स्थावर जीवों की स्थापना को त्रिविध रूप से मैं पीड़ित नहीं करूँगा-ऐसा मानसिक संकल्प स्थापना प्रत्याख्यान है । ३. अयोग्य आहार, उपकरणादि पदार्थों के ग्रहण न करने का संकल्प द्रव्य-प्रत्याख्यान है। ४. अयोग्य, अनिष्ट, प्रयोजनोत्पादक संयम की हानि करने वाले, संक्लेश-भावोत्पादक क्षेत्रों के त्याग का संकल्प क्षेत्र प्रत्याख्यान है। . ५. काल का त्याग शक्य न हो सकने के कारण उस काल में होने वाली क्रियाओं के त्याग का संकल्प काल प्रत्याख्यान है। ६. अशुभ परिणाम के त्याग का संकल्प भाव प्रत्याख्यान है, इसके मूलगुण प्रत्याख्यान और उत्तरगुण प्रत्याख्यान-ये दो भेद हैं । मूलाचारकार ने प्रत्याख्यान के मूलगुणप्रत्याख्यान और उत्तरगुणप्रत्याख्यान-दो भेद करके इनके श्रमणादि (आहारत्यागादि) भेदों का संकेत मात्र किया है और अन्त में प्रत्याख्यान के दस भेदों का विवेचन किया है । . १. मूलगुण प्रत्याख्यान-यह यावज्जीवन के लिए ग्रहण किया जाता है । इसके दो भेद हैं : सर्वमूलगुण प्रत्याख्यान (श्रमण के पाँच महाव्रतादि) तथा देशमूलगुण प्रत्याख्यान (गृहस्थों के पाँच अणुव्रतादि) । २. उत्तरगुण प्रत्याख्यान—यह प्रतिदिन एवं कुछ दिन के लिए उपयोगी है । इसके भी दो भेद हैं—पहला है सर्व-उत्तरगुण प्रत्याख्यान अर्थात् जो साधु और श्रावक दोनों के लिए होता है । इसके अनागत, अतिक्रान्त आदि दस भेद हैं जिनका विवेचन आगे किया गया है । द्वितीय है देश-उत्तरगुण प्रत्याख्यानजो केवल श्रावकों के लिए है । तीन-गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत (-सामायिक, प्रोषधोपवास, भोगोपभोगपरिमाण व्रत तथा अतिथिसंविभाग व्रत ) इनके अन्तर्गत आते हैं । (तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार-दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदण्डव्रत तथा रत्नकरण्ड श्रावकाचार के अनुसार दिग्व्रत, अनर्थदण्डव्रत तथा भोगोपभोग परिमाण व्रत-ये तीन गुण व्रत हैं ।) १. २. ३. भगवती आराधना विजयोदयाटीका गाथा ११६ पृष्ठ २७६-२७७ । मूलाचार ७/१३९, आवश्यक नियुक्ति दीपिका गाथा १५५७ । आवश्यक नियुक्ति दीपिका १५५५-१५५७ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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